20150327

ज्योतिषी महामानव या भगवान का अवतार नहीं


हर जिले में अनिवार्यत: एक जिलाधीश होता है , किन्तु कई जिलों में भटकने के बाद भी एक सही ज्योतिषी से भेंट नहीं हो पाती , ऐसा लोगों का मानना है। इस विरलता का यह अर्थ कदापि नहीं कि ज्योतिषी कोई महामानव या भगवान का अवतार होता है , जैसा कि लोग सोंचते हैं और ज्योतिषी से बहुत अधिक अपेक्षा करते हैं। वे समझते हैं कि ज्योतिषी को न सिर्फ सभी बातों की जानकारी होती है , वरन् वे सभी जटिलताओं का इलाज भी कर सकते हैं। लेकिन वास्तव में ऐसी कोई बात नहीं होती। मै यह स्वीकार करता हूं कि भविष्य की जानकारी के लिए फलित ज्योतिष के सिवा कोई दूसरी विद्या सहायक नहीं हो सकती और किसी व्यक्ति का यह बड़ा सौभाग्य है कि इसकी जानकारी उसे होती है , किन्तु किसी भी हालत में वह सर्वज्ञ नहीं हो सकता। 
अभी तक फलित ज्योतिष विकासशील विद्या ही है , पूर्ण विकसित या विज्ञान का स्वरुप प्राप्त करने में अभी काफी विलम्ब है। ऐसी स्थिति में इसका सहारा लेकर वांछित निष्कर्ष प्राप्त कर लेना काफी कठिन कार्य है। बुिद्धमान ज्योतिषी को भी किसी निष्कर्ष तक पहुंचने में अपने अंत:करण की आवाज या अनुमान का आंिशक तौर पर सहारा लेना ही पड़ता है।
असाधारणत्व की रक्षा के लिए संदिग्ध आचरण
अक्सर यह देखा गया है कि इस अनुमान की जगह ज्योतिषी धूत्र्तता का सहारा लेते हैं। यह सत्य है कि जिस तरह के साधन का उपयोग किया जाता है , साध्य भी उसी अनुरुप हो जाता है। फलित ज्योतिष की बहुत सारी त्रुटियो के कारण इस समय किसी लगनशील समर्पित ज्योतिषी द्वारा भी की जानेवाली भविष्यवाणी भी अविकसित आधार के कारण त्रुटिपूर्ण ही प्राप्त होगी। इस परिस्थिति में फलित ज्योतिष के जानकार सिद्ध पुरुष , महामानव या भगवान के अवतार हो ही नहीं सकते। इस प्रकार का ढोंग भी अच्छा नहीं लगता। फलित ज्योतिष के अध्येता इन कमजोरियों से भली-भॉति परिचित हैं। वे अन्य विद्याओं के जानकार की तरह ही फलित ज्योतिष के जानकार हैं। ग्रहों के फलाफल की जानकारी कुछ सूत्रों , सिद्धांतों और गणना के आधार पर प्राप्त कर लेते हैं। उन सिद्धांतों , सूत्रों या गणना की पद्धति की जिसे जानकारी हो जाएगी , वह वह भी सतत् अभ्यास से वांछित फल को प्राप्त कर सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में कोई ज्योतिषी अपने को भिन्न समझे या लोग उसे असाधारण समझने लगें तो आमलोगों की अपेक्षाएं नििश्चत तौर पर बलवती हो जाएंगी।
आमलोग ज्योतिषियों से अधिक अपेक्षा रखते हैं , इसीलिए इन्हें सिद्धपुरुष भी समझने लगते हैं। इधर ज्योतिषी भी इनके मनोभावों को समझकर अपनी वेश-भूषा , खान-पान , रहन-सहन , दिनचर्या , को असाधारण और भिन्न बनाकर लोगों की अपेक्षाओं में वृिद्ध ही करते हैं। किन्तु किसी की अधिक अपेक्षा करने से तथा उनकी मनोकामना की पूर्ति की दिशा में कोई मिथ्या आश्वासन देने के बीच एक बड़ी खाई बन जाती है। मजबूरन तथाकथित असाधारण व्यक्ति अपने असाधारणत्व की रक्षा के लिए तरह-तरह के झूठ-सच सबका सहारा लेते हैं और अंतत: उनका व्यक्तित्व संदिग्ध हो जाता है। किसी विज्ञान का विकास ऐसे महामानवों से कदापि नहीं हो सकता , जो बाबा या भगवान कहलाने में गर्व महसूस करते हों और फिर संदिग्ध आचरण को प्रस्तुत करते हों।
एक ज्योतिषी भी ग्रहों से संचालित है
मै कहना चाहता हूं कि ज्योतिषी भी एक मनुष्य है , वह भी ग्रहों से संचालित है । किसी एक ग्रह की वजह से ज्योतिष प्रकरण की उसे विशेष सकारात्मक जानकारी हो गयी है। हो सकता है , अन्य ग्रहों का भी सहयोग इस विशेष दिशा में प्राप्त हो गया हो। निस्संदेह ऐसी परिस्थितियों में उसे ज्योतिष शास्त्र का विशेष ज्ञान प्राप्त हो गया हो और इसके विकसित होने की संभावना बढ़ेगी , जिससे लोगो का दृिष्टकोण में परिवत्र्तन हा़ेगा , लोग सत्य के अधिक निकट होंगे। ग्रह फलाफल की सही जानकारी से लोग अधिक सुखी हो सकते हैं , किन्तु व्यक्ति या महामानव कोई भी हो , सभी के लिए अच्छे या बुरे ग्रहों का काल उपस्थित होता रहता है।
संसार का निर्माण ही धनात्मकता और ऋणात्मकता के संयोग से हुआ है। अत: किसी ज्योतिषी को भविष्यद्रष्टा या दूरदिशZता से संयुक्त एक मनुष्य से अधिक समझने की बात नहीं होनी चाहिए। संसार में इनकी भी बहुत सारी समस्याएं हो सकती हैं। इनके शरीर में किसी प्रकार की जटिलताएं आ जाएं तो इन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ सकता है। इनका भी अपना परिवार होता है , जिसके सदस्यो की देखभाल के लिए इनको धन की भी आवश्यकता होती है। इनके भी बंधु-बांधव होते हैं , जिनका ख्याल रखना पड़ता है। ये भी संपत्ति और स्थायित्व की अभिलाषा रखते हैं । इनकी भी संतानें होती हैं और वे इन्हें सुिशक्षित बनाकर अधिकारी बनाने का सपना देखते हैं। ये अपने अहं की रक्षा के लिए अपने प्रभाव को प्रदिशZत करने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं।
ज्योतिषी भी शरीरधारी हैं और इनके शरीर में सभी ग्रंथियॉ मौजूद हैं। स्वाभाविक है , इनकी सभी इंद्रियॉ सचेतन होंगी। अत: इनके लिए भी अच्छी गृहस्थी और विश्रामागार आवश्यक है। जनसामान्य की तरह ही काम , निद्रा , क्षुधा , नित्यकर्म में नियमितता इनके लिए आवश्यक हैं। समाज राज्य में अपने वर्चस्व , प्रभाव और प्रतिष्ठा को बनाए रखने की ये अभिलाषा रखते होंगे। मानवीय स्वभाव के अनुरुप ही यदि वे समाज को कुछ दे रहें होंगे , तो कुछ प्राप्ति की आशा भी मन में संजोए होंगे। इनके जीवन का भी कुछ अभीष्ट होगा , जिससे वे संयुक्त होना चाहते होंगे।
ये ब्रह्मवेत्ता हैं , ये भविष्यद्रष्टा हैं , ये महामानव हैं , यहॉ तक कि ये भगवान हैं , अत: सांसारिकता से इन्हें कोई मतलब नहीं है , जब लोग किसी के प्रति ऐसी बातें सोंचने लगतें हैं तो वह व्यक्ति भी जाने अनजाने वैसा ही आचरण लोगों के सम्मुख प्रस्तुत करता है। सन्यासी की वेश-भूषा धारण कर वह यह सिद्ध करने की चेष्टा करता है कि उसके शरीर की रक्षा और साज-सजावट के लिए कम से कम वस्त्रों की आवश्यकता है। दाढ़ी-मूंछ और जटा-जूट रखकर वह प्रकृति के अधिक निकट होने की ढोंग करता हैं। वह सादे रहन-सहन और उच्च विचारधारा के प्रदशZन का स्वांग रचता है , भगवान का एजेंट होने का दावा करता है , किन्तु बहुत सारी कहानियों में आपने पढ़ा होगा कि ऐसे लिबास के अंदर बहुत ही क्रूर अमानवीय व्यक्ति छुपा होता है। ऊपर से सन्यासी की वेश-भूषा धारण करनेवाला व्यक्ति लुटेरा या डकैत होता है । लोग उसे ठगना चाहते हैं , वह लोगों को ठगकर चला जाता है। यहॉ न्यूटन का तीसरा नियम लागू होता है । किसी ज्योतिषी को मामूली दक्षिणा देकर वे अपनी ड्यूटी पूरी कर लेते हैं , यह सोंचते हुए कि ज्योतिषी को भला धन की क्या आवश्यकता , पर ज्योतिषी को लगता है , इस ब्रह्मज्ञान के बदले इतनी मामूली सी दक्षिणा , जिससे परिवार का भरण-पोषण भी ढंग से नहीं किया जा सकता। बाबा द्वारा निकाले गए दूसरे रास्ते में आप कर्मकांड में इस प्रकार उलझा दिए जाते हैं , कि उनकी जेब बढ़िया से कट जाती है। बाबा अच्छी तरह जानते हैं कि इस दुनिया में कम से कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी अच्छी कमाई कर लेता है , जब उन्हें पैसे-पैसे के लिए ही मुहंताज रहना पड़े , तो फिर इस ब्रह्मविद्या की जानकारी से क्या लाभ ?
डॉक्टर , इंजिनियर , वकील अपेक्षाकृत कम जानकारी के बाद भी अधिक से अधिक धन अर्जित करने में सक्षम हैं। यही नहीं , उनके सहयोगी क्वैक डॉक्टर , चैनमैन या मुंशी भी नाजायज कमाई करके प्रचुर धन अर्जित कर लेते हैं। ऐसी परिस्थिति में मामूली दक्षिणा में कोई ज्योतिषी इस विद्या में किस प्रकार पूर्ण समर्पित हो सकता है ? सरकारी व्यवस्था भी ऐसी कि डिग्री , डिप्लोमा प्राप्त करनेवाले व्यक्ति को सरकारी नौकरी मिल भी सकती है , पर फलित ज्योतिष के जानकार को नहीं। अत: ब्रह्मविद्या के जानकार दैवज्ञ बाबा अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने में ठगी और धूत्र्तता का सहारा लेते हैं।
जो ज्योतिषी सामान्य व्यक्ति की तरह अपने घर में रहकर फलित ज्योतिष के अध्ययन में जीजान से जुटा हो , उसे मामूली व्यक्ति समझकर पेश आया जाता है। यदि उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर है और उसके समक्ष स्थायित्व का संंकट है तो उसे सही पारिश्रमिक देकर भी उसे उबारा नहीं जाता है , सबको लगता है कि उनके पैसे का दुरुपयोग न हो जाए । एक ज्योतिषी तो बाबाजी होता है , उसे स्थायित्व की क्या आवश्यकता ? उसे तो आश्रम में होना चाहिए , जहॉ घर-गृहस्थी का कोई झमेला न हो । वे आश्रम में रहकर इस विद्या को अधिक विकसित कर पाएंगे , ऐसा सबका मनोभाव होता है । इस मनोभाव को बाबा अच्छी तरह समझने लगे हैं , इसलिए वे आश्रम में ही रहने लगे हैं।
भीड़ भाड़ से दूर स्थित होता है बाबा का आश्रम
हर आश्रम भीड़-भाड़ से दूर प्राकृतिक सुषमाओं से संयुक्त काफी विस्तृत जमीन पर होता है। एक समाजसेवी संस्था के रुप में इसके विकास का संकल्प होता है। इसके बहुत सारे विभाग होते हैं। इसके लिए बड़ी बड़ी इमारतों की जरुरत होती है। लोगों के सर्वांगीन विकास के साथ साथ बहुआयामी सुख-सुविधाओं का संकल्प होता है । यहॉ दैहिक , दैविक , भौतिक ताप किसी को नहीं होना चाहिए। नर-नारी का कोई भेद नहीं होता , सबके मनोवैज्ञानिक सुख और संतुिष्ट के लिए आश्रम उन्मुक्त , स्वच्छंद भोग विलास की पुष्पवाटिका होती है। सभी उच्च संगति का रसास्वादन करते हैं। ऐसे स्वर्गीय सुख को प्राप्त करने के लिए रमणीक स्थल का विकास किया जाता है , जिसके लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। खास अवसरों पर यहॉ बड़े-बड़े उत्सव का आयोजन होता है। हजारो और लाखों की संख्या में भीड़ एकति्रत होती है। भक्त बहुत ही गदगद होकर बड़ी श्रद्धा के साथ क्षणभर में दान-दक्षिणा में लाखों करोड़ों एकति्रत कर देे हैं। आश्रमवाले बाबा विशेष उत्सव के अवसर पर साज-सजावट में जितना ही अधिक तामझाम प्रस्तुत करते हैं , जितने ही आधुनिक संसाधनों का उपयोग करते हैं , चंदे की रकम उसी के अनुपात में कई गुणा अधिक बढ़ते हुए क्रम में होती है। इस तरह भीड़-भाड़ , ताम-झाम और समृिद्ध ही उनके आध्याित्मक विकास और गुण-ज्ञान की गहराई का परिचायक बन जाती है , जबकि सच तो यह है कि प्रयोगशाला में तल्लीन खेजकत्र्ता के लिए भीड़-भाड़ , तामझाम या बड़े धन की आवश्यकता नहीं होती।
उपरोक्त व्याख्या का यह कदापि अर्थ नहीं कि मै बड़ी संस्था या आश्रम का पक्षधर नहीं हूं। विश्वकवि रविन्द्र नाथ टैगोर ने वोलपुर के आश्रम शांति-निकेतन को विश्वविद्यालय का स्वरुप प्रदान किया। श्रीराम शर्मा आचार्य ने मथुरा के अपने आश्रम को गायत्री मंत्र के माध्यम से जन-जागरण और आध्याित्मक विकास का उत्कृष्ट मंच बना दिया है। संसार के सभी विद्यालयों को चलाने के लिए बड़े पैमाने पर धन और संसाधन की आवश्यकता होती ही है , किन्तु संचालनकत्र्ता के गुण-अवगुण की परीक्षा करने में चूक हुई तो आश्रम वाले बाबा विराट स्तर पर व्याभिचार के साथ ही साथ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय गिरोह के सरगना के रुप में कााम करना आरंभ कर देते हैं। किसी विश्वविद्यालय की पढ़ाई-लिखाई या प्रयोगशाला के प्रयोग में धनागम और खर्च का नियमित लेखा-जोखा होता है। आश्रम का लेखा-जोखा , हिसाब-किताब बाबा की इच्छा होती है। विश्वविद्यालय के उपकुलपति , प्राचार्य और हर विभाग के अध्यक्षों की शैक्षणिक और बौिद्धक योग्यता खुली किताब की तरह होती है, हो सकता है , यहॉ भी कुछ घपला हो , किन्तु आश्रम के मौनी बाबा और उनकी संपूर्ण कार्यवाही रहस्यात्मक होने के कारण संदेह के घेरे में होती है। वहॉ अच्छाइयों के साथ ही साथ बुराइयों के पनपने की पूरी संभावना होती है। अत: बहुत सारी विशेषताओं के बावजूद मानव को महामानव समझने की भूल न करें , किसी ज्योतिषी को बाबा , सृिष्टकत्र्ता , जन्मदाता या भगवान नहीं समझें। यदि आत्मा कहे तो गुरुजी या आचार्य कहना ही काफी होगा।
मामूली भूल भी विरक्ति का कारण बन जाती है
कहने का अभिप्राय यह है कि जिस बाबा में मानवीय गुणों का अत्यधिक विकास हो चुका है , जो अपने नैसगिZक गुणों के विकास के कारण लोक-मंगल की कामना और तद्नुरुप आचरण के लिए विख्यात है , जिन्हें ईश्वर के सही स्वरुप का बोध हो चुका है या जो ब्रह्मविद्या के जानकार हैं , वे भी शरीर धारण करने की वजह से संासारी है तथा संासारिक आवश्यताओं कोे महसूस करते हैं। अत: बाबा बनाकर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित न करें , अन्यथा अपनी जरुरतों के लिए वे जो रास्ता अपनाएंगे , वह आपको नागवार लग सकता है।
किसी से अधिक अपेक्षाएं रखने से उसकी मामूली भूल भी विरक्ति का कारण बन सकती है। यही कारण है कि ज्योतिषी की एक भी भविष्यवाणी गलत होने पर लोग विक्षुब्ध हो जाते हैं , उनकी आस्था वहॉ पर घटने लगती है, उनका विद्रोहात्मक स्वरुप उभरने लगता है , जबकि सच तो यह है कि हर मनुष्य से भूल होती है , ज्योतिषी से भी भूल हो सकती है। अरबों रुपए खर्च करके वैज्ञानिक एक उपग्रह छोड़ता है ,कुछ ही देर बाद वह पृथ्वी पर गिर जाता है , उपग्रह के ध्वस्त होने से देश की बड़ी पूंजी नष्ट होती है , बहुत सारे वैज्ञानिकों का वषोZं का परिश्रम बर्वाद होता है, इस प्रकार के प्रयोग में कल्पना चावला जैसी मूल्यवान वैज्ञानिक मारी जाती हैं , किन्तु इसके लिए वैज्ञानिकों की योग्यता को चुनौती नहीं दी जा सकती। उनके दोषों को क्षमा कर दिया जाता हैं , यह सोंचते हुए कि वैज्ञानिक भगवान नहीं होते । क्या यही कम है कि अनंत आकाश में उड़ने की महत्वाकांक्षी योजना या प्रगतिशील और विकासोन्मुख विचारधारा उनके पास है ? प्राकृतिक नियमों के रहस्यों से पर्दा उठाकर उन शक्तियों का समुचित उपयोग मनुष्य की सुख-सुविधाओं के लिए कर रहें हैं। एक डॉक्टर चिकित्सा विज्ञान का विशेषज्ञ होता है । अपनी जानकारियों से मनुष्य या पशु के शरीर में उत्पन्न जटिलताओं को दूर करता है , किन्तु इलाज के क्रम में बहुत लोग मारे भी जाते हैं। इस तरह मनुष्य के पृथ्वी पर बने रहने के पीछे डॉक्टर का इलाज है , तो इलाज के दौरान मनुष्यों के मरने का अपयश भी उसके साथ है। लोगों की नजर में डाक्टर कसूरवार नहीं है , क्योंकि लोग उसे बाबा या भगवान के समकक्ष नहीं मानते। हर वकील मुकदमें की पैरवी करता है , सभी मुकदमा जीतने की इच्छा रखते हैं , लेकिन हर मुकदमें का निष्कषZ एक ही होता हैै , एक वकील जीतता है और दूसरा हारता है , किन्तु हारनेवाला मुविक्कल कभी भी किसी वकील पर दोषारोपण नहीं करता। वकील के हार-जीत की संभावनाएं 50 प्रतिशत होती है , किन्तु किसी ज्योतिषी की एक भी भविष्यवाणी गलत हो जाए तो उसपर चतुिर्दक आक्रमण होने लगता है ,क्योंकि बाबा की छोटी सी भूल को भी भक्तगण क्षमा नहीं कर पाते।
आखिर ज्योतिषी का सामाजिक स्वरूप क्या हो
एक बहुत ही गंभीर प्रश्न खड़ा होता है। क्या सचमुच ही बाबा के इसी रुप में लोग श्रद्धावनत होते हैं ? ज्योतिषी बाबा सरल वेश-भूषा में हो , उसे कम से कम संासारिक आश्यकताएं हों , उसे कम से कम पारिश्रमिक दिया जाए , उसे स्थायित्व प्राप्त न रहे , हर प्रकार की सुख-सुविधाओं से संयुक्त आवासीय सुविधा न हो , स्वयं सहनशील हो , उनकी संतान प्रगतिशील न हो। प्राचीनकाल में ऋषियों के साथ उनकी पित्नयॉ भी हुआ करती थी, परंतु आज के बाबा का जो स्वरुप लोगों के मस्तिष्क में उभरता है , वह यह कि उनके आध्याित्मक विकास के लिए उनका गृहस्थ आश्रम आवश्यक नहीं है। गृहस्थ होने मात्र से उनकी योग्यता को संदेह के घेरे में डाल दिया जाता है। आखिर जो विशुद्ध ज्योतिषी हैं , उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे होती होगी , यह ज्योतिषी के समक्ष उपस्थित होनेवाले लोग भी नहीं बता पाएंगे। सामान्य लोग उन्हें भगवान का दर्जा देकर मुक्त हो जाते हैं , जबकि मूर्धन्य लोग ज्योतिषी से मिलने की बात को छिपाने की पूरी कोिशश करते हैं। बड़े राजनेताओं की किसी ज्योतिषी से मिलने की चर्चा-परिचर्चा अखबारों पति्रकाओं में इतनी हो जाती है कि यही उनके पराभव का कारण बन जाती है। वत्र्तमान समाज में एक ज्योतिषी बाबा है या अछूत , यह बात तो हमारी समझ से परे है , किन्तु इतनी बात तो स्पष्ट है कि प्रगतिशील विचारधारा का कोई व्यक्ति ज्योतिषी से मिला , तो वह दकियानूसी हो गया। भला बताइए तो सही , उस ज्योतिषी बाबा के प्रति जनता का कौन सा भाव अच्छा है , जिसकी प्रशंसा की जा सके। नििश्चत रुप से बाबा कहकर जनता उसे ठगने की चेष्टा करती है , इसलिए वह खुद ही ठगी जाती है। अच्छा होगा , किसी ज्योतिषी की बौिद्धक क्षमता ,अर्जित गुण-ज्ञान के समानांतर उन्हें अपना हितैषी समझते हुए उसी के अनुरुप उनके साथ मानवीय व्यवहार प्रदिशZत किया जाए।
वास्तव में ज्योतिषी एक समय विशेषज्ञ है
एक ज्योतिषी समय विशेषज्ञ होता है। उसका काम अच्छे या बुरे समय की सूचना देना है। किन्तु अच्छा या बुरा समय बहु-आयामी हो सकता है। यदि समय अच्छा हुआ , तो कोई जरुरी नहीं कि आप सभी प्रकार के काम कर लेंगे , किन्तु इतना अवश्य होगा कि आपका कुछ काम इस ढंग से बनेगा कि कि आपका मनोबल ऊंचाई की ओर जाएगा। इस तरह बुरा समय हो तो कोई आवश्यक नहीं कि हर काम बुरा ही हो , परंतु कुछ घटनाएं इस ढंग से घटित होंगी , जिससे मनोबल गिरा हुआ महसूस होगा। अच्छा समय है तो कोई भी व्यक्ति अधिक से अधिक मनोवांछित फल की प्राप्ति के संदर्भ में बिल्कुल मस्त होता है। उसे किसी की परवाह नहीं होती , वह एक क्षण के लिए भी कदापि नहीं सोंच पाता कि इसकी निरंतरता में कभी कमी भी हो सकती है। उस समय किसी ज्योतिषी से राय-परामशZ करना भी उसकी शान के खिलाफ होता है। हर प्रकार के अच्छे फल को अपना कर्मफल मानता है , किन्तु बुरे समय के उपस्थित होने से उसकी घबराहट काफी बढ़ जाती है। बुरे समय की तीव्रता को कैसे कम किया जाए इसकी चिन्ता प्राय: सभी व्यक्ति को होती है। इसी अतिरिक्त प्रत्याशा के साथ प्राय: पूरा समाज किसी ज्योतिषी की ओर आकर्षित होता है , किन्तु बुरे समय को अच्छे समय में परिवर्तित करने के असफल प्रयास के कारण ही कोई ज्योतिषी बदनाम हो जाता है और पूरा समाज उससे विकर्षित होने लगता है। भला-बुरा कहने में भी लोगों को कोई हिचकिचाहट नहीं होती और ज्योतिषी के दिव्य या ब्रह्मज्ञान का कोई महत्व नहीं रह जाता।
कैसी विडम्बना है , एक ज्योतिषी आधुनिक वेश-भूषा , खान-पान का हिमायती हो तो उसके ज्योतिषीय ज्ञान पर संशय किया जाता है , वही ज्योतिषी किसी साधु-सन्यासी की वेश-भूषा में हो उसका खान-पान सन्यासियों की तरह हो , तो उसे लकीर का फकीर दकियानूस कहा जाता है , उसकें चरित्र को संदेह की दृिष्ट से देखा जाता है। इस परिस्थिति में एक प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है , ज्योतिषी का सामाजिक स्वरुप तांति्रक , यांति्रक , पुजारी , बाबा , सन्यासी या वैज्ञानिक - किसके जैसा हो ? ज्योतिषी एक सामान्य मनुष्य है , जिसे भविष्य की जानकारियॉ होती है। भविष्य की जानकारी देनेवाला व्यक्ति भविष्य को बदल नहीं सकता। भूकम्प या समुद्री तूफान की सूचना देनेवाला भूकम्प या समुद्री तूफान को रोक नहीं सकता , सिर्फ पूर्व सूचना से इससे प्रभावित होनेवाले लोग सावधानियॉ बरत सकते हैं। दो व्यक्ति राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं , दोनो की जन्मकुंडली देखकर किसी के राष्ट्रपति चुने जाने की भविष्यवाणी की जा सकती है , परंतु दोनो के भाग्य या मंजिल को कैसे बदला जा सकता है ?
सूर्यग्रहण की भविष्यवाणी कर उससे पड़नेवाले प्रभाव को समझाया जा सकता है , परंतु इसे रोका नहीं जा सकता । जानकारी होने के बाद लोग क्या कर सकते हैं , वे अपनी बनावट के अनुसार , अपनी मानसिकता के अनुसार निर्णय लेंगे। आपके क्षेत्र में तूफान या भूकम्प हो , तो क्या करना होगा , सूर्यग्रहण के समय सूर्य को देखें या नही ? या फिर देखे तो किस प्रकार ? लोग अपनी कमजोरियों , असफलताओं और अदूरदिशZता को किसी ज्योतषी पर नहीं थोपें , यही ज्योतिष के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी । अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए ग्रहों के जानकार के विवादास्पद स्वरुप को प्रस्तुत न करें।

20150326

ज्‍योतिष में झाड़झंखाड़ों को काटकर बनाया गया है एक सुंदर पथ

सभी व्यक्तियों को भविष्य की जानकारी की इच्छा होती है, अतः फलित ज्योतिष के प्रति जिज्ञासा और अभिरुचि अधिसंख्य के लिए बिल्कुल स्वाभाविक है। फलित ज्योतिष एकमात्र विद्या है , जिससे समययुक्त भावी घटनाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है, इसी विश्वास के साथ जहा एक ओर आधी आबादी राशिफल पढ़कर संतुष्ट होती है, वहीं दूसरी ओर बुद्धिजीवी वर्ग फलित ज्योतिष में इसके वैज्ञानिक स्वरुप को नहीं पाकर इसकी उपयोगिता पर संशय प्रकट करते हैं। फलित ज्योतिष परंपरागत ढंग से जिन रहस्यों का उद्घाटन करता है , उनका कुछ अंश सत्य को कुछ भ्रमित करनेवाला पहेली जैसा होता है। इस कारण लोग एक लम्बे अर्से से फलित ज्योतिष में अंतर्निहित सत्य और झूठ दोनो को ढोते चले आ रहे हैं।
यह भी ध्यातब्य है कि जो विद्या वैदिककाल से आज तक लोगों को आकर्षित करती चली आ रही है , वह केवल शब्दजाल या अंध-विश्वास नहीं हो सकती। निष्कर्षतः अभी भी फलित-ज्योतिष विकासशील विद्या है , इसका पूर्ण विकसित स्वरुप उभरकर सामने तो आ रहा है परंतु अभी भी विकास की काफी संभावनाएं विद्यमान हैं। विकास के मार्ग में कदम-कदम पर भ्रांतियां हैं। बुद्धिजीवी वर्ग ग्रहों के प्रभाव का स्पष्ट प्रमाण चाहता है , ज्योतिषी इसकी वैज्ञानिकता को सिद्ध नहीं कर पाते हैं। ग्रह-स्थिति से संबंधित कुछ नियमों का हवाला देते हुए अपने अनुभवों की अभिव्यक्ति करते हैं। एक ही प्रकार के ग्रह-स्थिति का फलाफल विभिन्न ज्योतिषी विभिन्न प्रकार से करते हैं , जो संदेह के घेरे में होता है। आम लोग फलित ज्योतिष से कब, कैसे, कौन, कितना का उत्तर स्पष्ट रुप से चाहते हैं , किन्तु ज्योतिष से प्राप्त उत्तर अस्पष्ट, छायावादी और प्रतीकात्मक होता है। पारभाषक जानकारी आज के प्रतियोगितावादी युग में नीति.निर्देशक नहीं हो सकती ।
संभवतः यही कारण है कि आजतक विश्व के विश्व-विद्यालयों में फलित-ज्योतिष को समुचित स्थान नहीं मिल सका है। फलित ज्योतिष का सम्यक् विकास कई कारणों से नहीं हो सका। ज्योतिषयों को भ्रांति है कि यह वैदिककालीन सर्वाधिक पुरानी विद्या या ब्रह्म विद्या है , इसमें वर्णित समग्र नियम पुराने ऋषि-मुनियों की देन है , इसलिए फलित ज्योतिष पूर्ण विज्ञान है तथा इन नियमों में किसी प्रकार के संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः ये फलित ज्योतिष की कमजोरियों को ढूढ़ नहीं पाते हैं। यदि कोई व्यक्ति इसकी कमजोरियों की ओर इशारा करता है तो ज्योतिषी इसे स्वीकार नहीं कर पाते हैं। ज्योतिष की कमजोरियों की अनुभूति होने पर उसकी क्षति-पूर्ति ज्योतिषी सिद्ध पुरूष बनकर करते हैं, मौलिक चिंतन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का वे सहारा नहीं ले पाते। फलतः विकसित गणित या विज्ञान की दूसरी शाखाओं के सहयोग से वे वंचित रह जाते हैं।
दूसरी ओर भविष्य के प्रति जिज्ञासु एक ज्योतिष-प्रेमी इस विद्या को पूर्ण विकसित समझते हुए ऐसी अपेक्षा रखता है कि ज्योतिषी के पास जाकर भविष्य की भावी घटनाओं की न वह केवल जानकारी प्राप्त कर सकता है ,वरन् अनपेक्षित अनिष्टकर घटनाओं पर नियंत्रण प्राप्त करके अपने बुरे समय से छुटकारा भी प्राप्त कर सकता है। किन्तु ऐसा न हो पाने से लोगों को निराशा होती है , ज्योतिष के प्रति आस्था में कमी होती है, फलित ज्योतिष वैदिककालीन स्वदेशी विद्या है, भारतीय संस्कृति , दर्शन और आध्यात्म की जननी है, इसके विकास के लिए सरकारी कोई व्यवस्था नहीं है । प्रशासक और बुद्धिजीवी वर्ग ज्योतिष की अस्पष्टता को अंधविश्वास समझते हैं । जिन मेधावी , कुशाग्र बुद्धि व्यक्तियों को ज्योतिष के विकास में अतिशय रुचि होती है , अर्थाभाव होने से “शोध-कार्य में पूर्ण समर्पित नहीं हो पाते। इस कारण मौलिक लेखन का अभाव है , इसलिए ज्योतिष बहुत दिनों से यथास्थितिवाद में पड़ा हुआ है।
मै इसके वर्तमान स्वरूप का अंधभक्त नहीं
मुझे फलित ज्योतिष में गहरी अभिरुचि है ,परंतु मै इसके वर्तमान स्वरुप का अंधभक्त नहीं हूं । इसकी यथास्थितिवादिता वैज्ञानिक स्वरुप प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा बन गयी है। मै ज्ञानपूर्वक इसमें अंतर्निहित सत्य और असत्य को स्वीकार करने का पक्षधर हूं । मै इस विषय में सत्य के साक्षात्कार से इंकार नहीं करता, इसे उभारने की आवश्यकता है , किन्तु इससे संश्लिष्ट भ्रांतियों का उल्लेख कर मैं इनका उन्मूलन भी चाहता हूं, ताकि यह निःसंकोच बुद्धिजीवी वर्ग को ग्राह्य हो, इसे जनसमुदाय का विश्वास प्राप्त हो सके। कुछ भ्रांतियों की वजह से फलित ज्योतिष की लोकप्रियता घट रही है , यह उपहास का विषय बना हुआ है।
ज्योतिषियों से विनम्र निवेदन
मैं प्रबुद्ध ज्योतिषियों से विनम्र निवेदन करना चाहूंगा कि एक ज्योतिषी होकर भी मैने फलित ज्योतिष की कमजोरियों को केवल स्वीकार ही नहीं किया , वरन् आम जनता के समक्ष फलित ज्योतिष की वास्तविकता को यथावत रखने की चेष्टा की है। मेरा विश्वास है कि कमजोरियों को स्वीकार करने पर जटिलताएं बढ़ती नहीं , वरन् उनका अंत होता है। फलित ज्योतिष की कमजोरियों को उजागर कर ज्योतिष के इस अंग को मै कमजोर नहीं कर रहा हं , वरन् इसके द्रुत विकास और वैज्ञानिक विकास के मार्ग को प्रशस्त करने की कोिशश कर रहा हूं। बहुत सारे ज्योतिषी बंधुओं को कष्ट इस बात से पहुंच सकता है कि परंपरागत बहुत सारे ज्योतिषीय नियमों को अवैज्ञानिक सिद्ध कर देने से ज्योतिष-शास्त्र में अकस्मात् शून्य की स्थिति पैदा हो जाएगी।
केवल ज्योतिष कर्मकाण्ड में लिप्त रहनेवाले विद्वानों को घोर असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा , कुछ आर्थिक क्षति भी हो सकती है , किन्तु यदि हम सचमुच ही फलित ज्योतिष का विकास चाहते हैं , तो इस प्रकार के नुकसान का कोई अर्थ नहीं है। आम ज्योतिषियों के लिए यह काफी अपमान का विषय है कि जिस विषय पर हमारी आस्था और श्रद्धा है , जिस विषय पर हमारी रुचि है , उसे समाज का बुिद्धजीवी वर्ग अंधविश्वास कहता है। दो-चार की संख्या में पदाधिकारीगण ज्योतिष पर विश्वास भी कर लें, इसपर अपनी रुचि प्रदिशZत कर ले , इससे भी बात बननेवाली नहीं है , क्योकि वे सार्वजनिक रुप से इस विद्या की वकालत करने में कहीं-न-कहीं से भयभीत होते हैं। अत: आज विश्व के विश्वविद्यालयो में इसे उचित स्थान नहीं प्राप्त है। इसकी वैज्ञानिकता पर लोगों को विश्वास नहीं है। प्रबुद्ध ज्योतिषी भी इसकी वैज्ञानिकता को सिद्ध नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में इस विद्या के प्रति संदेह अनावश्यक नहीं है।
आज आवश्यक है , हम ज्योतिष की कमजोरियों को सहज स्वीकार करते हुए इसके वैज्ञानिक पहलू का तेज गति से विकास करें। बहुत ही निष्ठुर होकर मैं फलित ज्योतिष की कमजोरियों को जनता के समक्ष रख रहा हूं । परंपरागत ज्योतिषी इसका भिन्न अर्थ न लें। ऐसा करने का उद्देश्य केवल यही है कि मै फलित ज्योतिष में किसी प्रकार की कमजोरी नहीं देखना चाहता हंं। विश्वविद्यालय इसकी वैज्ञानिकता को कबूल करे , इसे अपनाकर इसके प्रति सम्मान प्रदिशZत करें । जबतक इसे वैज्ञानिक आधार नहीं प्राप्त हो जाता, तबतक इसके अध्ययेता और प्रेमी आदर के पात्र हो ही नहीं सकते। अत: अवसर आ गया है कि सभी ज्योतिषी इसके वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक अध्याय पर ठंडे दिमाग से सूझ-बूझ के साथ विचार करें तथा इसे विज्ञान सिद्ध करने में कोई कसर न रहने दें। अपनी कमजोरियों को वही स्वीकार कर सकता है , जो बलवान बनना चाहता है। अकड़ के साथ कमजोरियों से चिपके रहने वाले व्यक्ति को अज्ञात भय सताता है। वे ऊंचाई की ओर कदापि प्रवृत्त नहीं हो सकते।
यह ब्लाग ज्योतिष-प्रेमियों को फलित ज्योतिष की कमजोरियों की ओर झॉकने की प्रवृत्ति का विकास करेगी तथा साथ ही साथ उनके उत्साह को बढ़ाने के लिए फलित ज्योतिष के कई नए वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी भी प्रदान करेगी । इस पुस्तक के माध्यम से मै विश्व के समस्त ज्योतिष प्रेमियों को यह संदेश देना चाहता हंू कि वे फलित ज्योतिष की त्रुटियों से छुटकारा पाने में अपने अंत:करण की आवाज को सुनें। ज्योतिषीय सिद्धांतों और नियमों को ऋषि-मुनियों या पूर्वजों की देन समझकर उसे ढोने की प्रवृत्ति का त्याग करें। जो सिद्धांत विज्ञान पर आधारित न हो , उसका त्याग करें तथा जो नियम विज्ञान पर आधारित हों, उनको विकसित करने में तल्लीन हो जाएँ

विश्वविद्यालयों द्वारा स्वीकृति पाना आवश्यक
भौतिक विज्ञान , रसायन विज्ञान , गणित या अन्य विज्ञानों के विभाग में लाखों विद्यार्थी नियमपूर्वक पढ़ाई कर रहें हैं और इसे सीखने में गर्व महसूस कर रहें हैं। ऐसा इसलिए हो पा रहा है कि इन विषयों को विश्वविद्यालय में मान्यता मिली हुई है। फलित ज्योतिष विश्वविद्यालयों द्वारा स्वीकृत नहीं है इसलिए इसे कोई पढ़ना नहीं चाहता । इसे पढ़कर इस भौतिकवादी युग में किस उद्देश्य की पूर्ति हो पाएगी ? केवल अंत:करण के सुख के लिए इसे पढ़ने का कार्यक्रम कबतक चल सकता है ? कबतक ज्योतिषियों कों फलित ज्योतिष की वैज्ञानिकता को प्रमाणित करने के लिए तर्क-वितकोZ के दौर से गुजरना होगा ? आज भी संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं , जो नि:स्वार्थ भाव से फलित ज्योतिष के विकास और इसे उचित स्थान दिलाने की दिशा में कार्यरत हैं ,किन्तु जाने-अनजाने उनकी सारी शक्ति ` विंशोत्तरी दशा पद्धति ´ में उलझकर रह गयी है। ग्रह-शक्ति के सही सूत्र को भी प्राप्त कर पाने में वे सफल नहीं हो सके हैं। मेरा विश्वास है कि यदि आप यह ब्लाग गंभीरतापूर्वक पढ़ेंगे तो नििश्चत रुप से समझ पाएंगे कि फलित ज्योतिष का विकास अभी तक क्यों नहीं हो सका ?
झाड़झंखाड़ों को काटकर बनाया गया है एक सुंदर पथ 
इस दिशा में शौकिया काम करनेवालों को यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता होगी जब उन्हें मालूम होगा कि फलित ज्योतिष के सिद्धांत , नियम और उपनियमों के घने बीहड़ जंगलों में जहॉ वे भटकाव की स्थिति में थे , अब झाड़-झंखाड़ों को काटकर एक सुंदर पथ का सृजन किया जा चुका है , लेकिन मै भयभीत हंू यह सोंचकर कि कहीं अतिपरंपरावादी ज्योतिषी जो भटकावपसंद थे , कहीं मुझपर आरोप न लगा बैठे कि मैने उनके सुंदर जंगलों को नष्ट कर दिया है क्योकि मेरे एक लेख को पढ़कर एक विद्वान ज्योतिषी ने मेरे ऊपर इस प्रकार का आरोप लगाया था।- 
वह नहीं नूतन , जो पुरातन की जड़ हिला दे। 
नूतन उसे कहूंगा , जो पुरातन को नया कर दे। 
ज्योतिषी बंधुओं , पुरातन को हिलाना मेरा उद्देश्य नहीं है , लेकिन कुछ नियमों और सिद्धांतों को ढोते-ढोते आप स्वयं हिलने की स्थिति में आ गए हैं , आप थककर चूर हैं , आप हजारो बार इस निष्कषZ पर पहुंचते हैं कि इन नियमों में कहीं न कहीं त्रुटियॉ हैं , फलित ज्योतिष के विकास में ठहराव आ गया है। इससे बचने के लिए पुराने का पुनमूZल्यांकण और नए नियमों का सृजन करना ही होगा ,अन्यथा हम सभी उपेक्षित रह जाएंगे। प्रस्तुत पुस्तक इस दिशा में काफी सहयोगी सिद्ध होगी। अंत में मै पुन: सभी ज्योतिषियों से क्षमा मॉगता हंू । सही समीक्षा के द्वारा फलित ज्योतिष का ऑपरेशन किया गया है , इससे कई लोगों की भावनाओं को चोट भी पहुंच सकती है , किन्तु मेरी कलम से लोग आहत हों ,यह उद्देश्य कदापि मेरा नहीं है। मुझे आप सबों के सहयोग की आवश्यकता है। इस पढ़ने के बाद किसी बिन्दु पर संशय उत्पन्न हो तो निस्संकोच पत्राचार करें .

20150325

ज्‍योतिषियों के समक्ष अक्‍सर उपस्थित होने वाले प्रश्‍न

ज्योतिषियों के समक्ष निम्नांकित प्रश्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से चुनौतियों के रुप में अक्सर रखे जाते हैं , जिनका समुचित उत्तर दिए बिना फलित ज्योतिष को कदापि विश्वसनीय नहीं बनाया जा सकता है।
राशि या लग्‍नफल का औचित्‍य 
विश्व की आबादी छः अरब है ,एक राशि के अंतर्गत 50 करोड़ व्यक्ति आते हैं। क्या एक राशि या लग्न के लिए लिखे गए फल करोड़ों व्यक्तियों के लिए सही हैं ? अगर लिखा गया फल सही है तो एक ही राशि के एक व्यक्ति का जिस दिन अच्छा होता है , उसी राशि के दूसरे व्यक्ति के लिए वह दिन बुरा क्यों होता है ? अगर फल सही नहीं है तो इतनी बड़ी आबादी को राशि-फल में उलझाए रखने का औचित्य क्या है ?
राहू और केतु क्‍या हैं 
राहू-केतु आकाश में कोई आकाशीय पिंड या ग्रह नहीं हैं । ये दोनो महज दो विन्दु हैं ,जिनपर सूर्य और चंद्रमा का वृत्ताकार यात्रा-पथ एक-दूसरे को काटता है। ये पिंड नहीं होने के कारण ग्रहों की तरह शक्ति उत्सर्जित करनेवाले शक्ति-स्रोत नहीं हैं , फिर भी आजतक ज्योतिषी लोगों के बीच इसके भयानक प्रभाव की चर्चा करते क्यों चले आ रहें हैं ? लोग राहू-केतु को पाप-ग्रह समझकर इनसे क्यों डरते हैं ?

क्‍या ग्रह सचमुच प्रभावी है ? 
करोड़ों-अरबों मील की दूरी पर स्थित ग्रह सचमुच जड़-चेतन पर प्रभाव डालता है ? अगर प्रभावित करता है तो किस विधि से प्रभावित करता है ? अगर इस दिशा में किसी प्रकार की खोज है तो उसका स्वरुप क्या है ? फलित ज्योतिष का वैज्ञानिक आधार क्या है ? क्या ग्रहों का मानव-जीवन पर प्रभाव है ?
क्‍या एक लग्‍न और समान ग्रह स्थिति में जन्‍म लेनेवालों का सबकुछ निश्चित होता है ? 
क्या लग्न-सापेक्ष ग्रह-स्थिति के अनुसार जन्म लेनेवाले व्यक्ति की कार्यशैली, दृष्टिकोण, शील, स्वभाव, संसाधन और साध्य निश्चित होता है ? एक लग्न में जन्म लेनेवाले व्यक्तियों की संख्या हजारों में होती हैं, अगर सभी का स्वभाव ,कार्यक्रम और साध्य एक होता तो महात्मा गाधी और जवाहरलाल नेहरु के साथ पैदा होनेवाले व्यक्ति या व्यक्तियों से संसार अपरिचित क्यों है ?
भविष्‍य बनाया जाए या भविष्‍य देख जाए ? 
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मवादी होने का उपदेश दिया है , जबकि फलित ज्योतिष भावी घटनाओं की जानकारी देकर अकर्मण्यता को बढ़ावा देता है। सवाल यह उठता है कि ग्रहों के प्रभाव और प्रारब्ध पर विश्वास किया जाए या कर्मवादी बना जाए ? उस जानकारी से क्या लाभ जो विश्व को अकर्मण्य बना दे ? भवितव्यता होकर रहेगी तो मनुष्य की इच्छाशक्ति और नैतिकता की क्या भूमिका होगी ? जो होना है, वही होगा , उसे हम बदल नहीं पाएंगे तो उस जानकारी से क्या लाभ हो सकता है ?

क्‍या भावी अनिष्‍टकर घटनाओं को टाला जा सकता है ? 
क्या भावी अनिष्टकर घटनाओं को टाला जा सकता है ? राम और युधिष्ठिर को बनवासी बनकर रहना पड़ा , हरिश्चंद्र श्मशान-घाट में चैकीदारी करने को विवश हुए , महाराणा प्रताप बहुत दिनों तक जंगल में भटकते हुए घास की रोटी खाने को मजबूर हुए । अभिप्राय यह है कि बुरे ग्रह का प्रभाव हर व्यक्ति के जीवन में देखा गया। सभी के गुरु आध्यात्मिक स्तर पर काफी ऊंचाई के थे , निश्चित रुप से बुरे ग्रहों के अनिष्टकर प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए तंत्र , मंत्र , यंत्र , पूजा-पाठ , प्रार्थना , रत्न-धारण , आदि का सहारा लिया गया होगा। आज के ज्योतिषी भले ही बुरे ग्रहों के प्रभावी समय की भविष्यवाणी करने में विफल हो जाएं , उनका इलाज करने में सफलता का दावा करते हैं। क्या ग्रहों के प्रभाव और रत्नों के प्रभाव के बीच परस्पर संबंध को सिद्ध करने के लिए एक प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है ? कहीं तंत्र , मंत्र ,यंत्र , पूजा-पाठ , प्रार्थना की तरह रत्न-धारण भी स्वान्तः सुखाय मनोवैज्ञानिक इलाज तो नहीं है ?
सप्‍ताह के दिनों का ज्‍योतिष में महत्‍व 
सप्ताह के अन्य दिनों की तरह रविवार को सूर्य की गति और स्थिति में कोई अंतर नहीं होता , फिर ज्योतिषी रविवार को रवि के प्रभाव से कैसे जोड़ देते हैं ? क्या सप्ताह के सात दिनों के नामकरण की ग्रहों के गुण-दोष पर आधरित होने की वैज्ञानिकता सिद्ध की जा सकती है ? यदि नही तो फिर दिन पर आधारित फलित और कर्मकाण्ड का औचित्य क्या है ?
शुभ मुहूर्त्‍त और यात्रा निकालने का महत्‍व 
शुभ मुहूर्त और यात्रा निकालने के बाद भी किए गए बहुत सारे कार्य अधूरे पड़े रहते हैं या कार्यों की समाप्ति के बाद परिणाम नुकसानप्रद सिद्ध होते हैं । एक अच्छे मुहूर्त में लाखों विद्यार्थी परीक्षा में सम्मिलित होते हैं , किन्तु सभी अपनी योग्यता के अनुसार ही फल प्राप्त करते हैं , फिर मुहूर्त या यात्रा का क्या औचित्य है ?
शकुन अशकुन का औचित्‍य 
बिल्ली के रास्ता काटने पर गाड़ी-चालक आकस्मिक दुर्घटना के भय से गाड़ी को कुछ क्षणों के लिए रोक देता है , किन्तु रेलवे फाटक पर चैकीदार के मना करने के बावजूद वह अपनी गाड़ी को आगे बढ़ा देता है । क्या यह उचित है ? क्या शकुन पद्धति या पशु-पक्षी की गतिविधि से भी भविष्य की जानकारी प्राप्त की जा सकती है ?

हस्‍तरेखा से भविष्‍य की जानकारी 
हस्तरेखा पढ़कर भविष्य की कितनी जानकारी प्राप्त की जा सकती है ? क्या इसके द्वारा संपूर्ण जीवन की समययुक्त भविष्यवाणी की जा सकती है ? क्या हस्तरेखाओं को पढ़कर जन्मकुंडली-निर्माण संभव है या महज यह एक छलावा है ? क्या हस्ताक्षर से व्यक्ति की मानसिकता या चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डाला जा सकता है या उससे तिथियुक्त भविष्यवाणिया भी की जा सकती हैं ? क्या हस्ताक्षर बदलकर भविष्य बदला जा सकता है ?
वास्‍तुशास्‍त्र का महत्‍व 
सभी व्यक्ति अपने भवन , संस्थान , औद्योगिक क्षेत्र के स्वरुप में वास्तुशास्त्र के अनुरुप परिवर्तन करने के बावजूद भाग्य के स्वरुप में कोई परिवर्तन नहीं कर पाता। आखिर वास्तुशास्त्र फलित ज्योतिष का ही अंग है या बुरे ग्रहों का इलाज या फिर प्राचीनकालीन भवन-निर्माण की विकसित तकनीक ?
प्रश्‍नकुडली से भविष्‍य 
अथक परिश्रम से मूल कुंडली की व्याख्या करते हुए ज्योतिषी आजतक व्यक्ति के सही स्वरुप , चारित्रिक विशेषताओं और प्रतिफलन-काल को निर्धारित करने में सफल सिद्ध नहीं हो सके हैं। फिर प्रश्‍नकुंडली से वे किस कल्याण की अपेक्षा करते हैं ?
राजयोग का महत्‍व 
फलित ज्योतिष में वर्णित राजयोग में उत्पन्न अधिकांश लोग न तो राजा होते हैं और न ही बड़े पदाधिकारी । अति सामान्य और गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले व्यक्तियों की कुंडलियों में कभी-कभी कई राजयोग दिखाई पड़ जाते हैं । ऐसी परिस्थितियों में इन राजयोगों का क्या महत्व रह जाता है ? इसका रहस्य कहीं अन्यत्र तो नहीं छिपा है ?
ग्रहशक्ति का असली रहस्‍य कहां छुपा है ? 
ग्रहों के दशाकाल निर्धारण के लिए अनेक पद्धतियों का उल्लेख है। सभी पद्धतियां ऋषि-मुनियों की ही देन है। इनमें से किसे सही और किसे गलत समझा जाए ? इतनी सारी पद्धतियों के बावजूद क्या सालभर बाद घटनेवाली घटनाओं की तिथियुक्त भविष्यवाणी संभव है ? स्थान-बल, काल-बल, दिक-बल , नैसर्गिक-बल , चेष्टा-बल ,दृष्टि-बल , षडवर्ग-बल , अष्टकवर्ग-बल आदि विधियों से ग्रहशक्ति की पैमाइश किए जाने की व्यवस्था है। क्या सचमुच इन विधियों से किसी कुंडली में सबसे कमजोर और सबसे शक्तिवाले ग्रह को समझा जा सकता है या ग्रहशक्ति का रहस्य उसकी गतिज ऊर्जा ,स्थैतिज ऊर्जा तथा गुरूत्वाकर्षण-बल में अंतर्निहित हैं ?
जमाने के साथ ग्रह के प्रभाव में परिवर्तन 
कुंडली के नवग्रह कभी बाल्यकाल में शादी का योग उपन्न करते थे, आज के युवा-युवती पूर्ण व्यस्क होने पर ही विवाह-बंधन में पड़ना उचित समझते हैं। ये ग्रह कभी बहुसंतानोत्पत्ति के लिए प्रेरित करते थे , आज भी वे ग्रह मौजूद हैं , किन्तु दम्पत्ति मात्र एक-दो संतान की इच्छा रखते हैं । पहले गर्भपात अवैध था ,आज इसे कानून का संरक्षण प्राप्त है। पहले लोग नौकरी करनेवालों को निकृष्ट समझते थे , आज लोग नौकरी के लिए लालायित रहते हैं । पहले वर्षा में नियमितता और प्रचुरता होती थी , आज अनिश्चिता और अनियमितता बनी हुई है। पहले लोगों का मेल-मिलाप और संबंध सीमित जगहों पर हुआ करता था , आज सभ्यता ,संस्कृति , राजनीति और बाजार का विश्वीकरण हो गया है। पहले लोग सरल हुआ करते थे , आज संत भी जटिल हुआ करते हैं। आखिर ग्रहों के प्रभाव में बदलाव है या अन्य कोई गोपनीय कारण है ?
इस ब्‍लाग में ज्‍योतिष के वास्‍तविक स्‍वरूप की चर्चा होगी 
ज्योतिष से संबंधित उपरोक्त प्रश्न अक्सरहा पत्र-पत्रिकाओं में ज्योतिषियों के लिए चुनौतयों के रुप में उपस्थित होते रहते हैं । मैनें भी ऐसा महसूस किया है कि इन प्रश्न के उत्तर दिए बिना फलित ज्योतिष को प्रगति-पथ पर नहीं ले जाया जा सकता। मुझे किसी ज्योतिषी से कोई शिकायत नहीं है। सभी ज्योतिषी अपने ढंग से फलित ज्योतिष को विकसित करने की दिशा में निरंतर कार्यरत हैं , परंतु किसी की कार्यविधि से संसार को कोई मतलब नहीं है , उसे प्रत्यक्ष-फल चाहिए। ज्योतिष में ग्रहों के फलों को जिस ढंग से प्रस्तुत किया गया है , उसमें कार्य , कारण और फल में अधिकांश जगहों पर कोई समन्वय नहीं दिखाई पड़ता है। यही कारण है कि उपरोक्त ढेर सारे प्रश्न आम आदमी के मनमस्तिष्क में कौधते रहते हैं। इन प्रश्नो के उत्तर नहीं मिलने से ज्योतिषीय भ्रांतिया स्वाभाविक रुप से उत्पन्न हुई हैं। इस ब्लाग में विवेच्य प्रसंगों की सांगोपांग व्याख्या करके पाठकों को ज्योतिष के वास्तविक स्वरुप से परिचित कराने की चेष्टा होगी। ज्योतिष के वैज्ञानिक स्वरुप को उभारते हुए ग्रहशक्ति और दशाकाल निर्धारण से संबंधित नयी खोजों का संक्षिप्त परिचय दिया जाएगा। यह भी सिद्ध किया जाएगा कि ग्रहों का जड़-चेतन , वनस्पति, जीव-जन्तु और मानव-जीवन पर प्रभाव है। प्रस्तुत पेज ज्योतिषयों ,बुद्धिजीवी वर्ग तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखनेवाले व्यक्तियों के लिए बहुत उपयोगी एवं सम्बल प्रदान करनेवाली सिद्ध होगी