20210320

सच की हमेशा जीत होती है !

True line in Hindi

जब हम उजाले में होते हैं,अमेरिका वाले अँधेरे में होते हैं. जब वे उजाले में होते हैं,हम अँधेरे में होते हैं. सच यही है कि सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की दैनिक गति के कारण हम दोनों ही अँधेरे और उजाले का सामना करते हैं. पृथ्वी गोल है, हम एक दूसरे के विपरीत गोलार्द्ध में हैं. अतः जब हम उजाले में होते हैं, वे अँधेरे में और जब हम अँधेरे में होते हैं, वे उजाले में. सत्य एक है, अनुभूतियों का समय अलग-अलग है.

True line in Hindi


एक वस्तु या तथ्य दो तरह से दिखाई पड़ता है, कोई एक ही सही होता है. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है या सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है, देर से ही सही लोगों ने स्वीकार किया कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है. पृथ्वी चपटी है या गोल है, लोगों ने माना, पृथ्वी गोल है. पृथ्वी स्थिर है या चलती है, लोगों ने स्वीकार किया, पृथ्वी चलती है. 

ज्योतिष न तो एकतरफा सच है, न एकतरफा झूठ

ज्योतिष विषय भी बहुत दिनों से विवादित है, एक वर्ग है जिसे ज्योतिष विज्ञानं के सारे सिद्धांतों में झूठ ही झूठ दिखाई पड़ता है, उनको किसी तरह से समझाइये, वे समझने के लिए तैयार नहीं हैं. इसमें सच्चाई भी हो सकती है, वे समझना नहीं चाहते, हर चीज़ को ये झूठ के ही चश्मे से देखते हैं. लेकिन ज्योतिषियों का एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे ज्योतिष में सच के सिवा कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता, इसमें झूठ का भी अंश हो सकता है, इसे ये कदापि स्वीकार नहीं करते क्योंकि यह ऋषि मुनियों की देन है, उनके अथक परिश्रम और तप से उपजी फसल है, यह झूठ कैसे हो सकती है?

लेकिन मेरी नजर में आज के दिन तक ज्योतिष न तो एकतरफा सच है, न एकतरफा झूठ है वरन सच कहूँ तो यह सच और झूठ दोनों का पुलिंदा है, इसीलिए आमलोग इसे कौतुहल की दृष्टि से देखते हैं. गत्यात्मक ज्योतिष ग्रह की गति में उसकी शक्ति को महसूस करता है. ग्रह अपनी विभिन्न गतियों से संसार के जड़-चेतन को प्रभावित करता है. इसके आधार पर फलित सिद्धांत, जिसका विकास हो रहा है, वह सत्य की कसौटी में खरा उतरता है. परंपरा से प्राप्त बहुत सारे ज्योतिषीय नियम भी सही हैं.

अतिशयोक्ति से परिपूर्ण भयोत्पादक और भ्रामक

लेकिन बहुत सारे ऐसे नियम हैं जो अतिशयोक्ति से परिपूर्ण भयोत्पादक और भ्रामक हैं, इन्हे विज्ञान, गणित और सांख्यिकी के नियमों के आधार पर खरा उतरना होगा. परंपरा से प्राप्त दशा पद्धत्तियां भी विज्ञान की कसौटी पर सही नहीं हैं. दस ज्योतिषी एक ही कुंडली का भविष्यकथन दस प्रकार से करते हैं, फलित में एकरूपता का अभाव है. सप्ताह के दिनों का नामकरण सुविधा के लिए किया गया है, ग्रहों से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है. यात्रा में दिशा शूल बकवास है. मुहूर्त्त निकलने का तथा कुंडली मेलापक का तरीका और आधार गलत है.

शकुन, स्वप्न, बिल्ली का रास्ता काटना, नजर लगना, न्यूमरोलॉजी, वास्तुशास्त्र आदि का ग्रहों से कोई सम्बन्ध नहीं है. राहु-केतु , सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण के आकाशीय बिंदु के संकेतक हैं. पिंड के अभाव में ये शक्ति उत्पादक नहीं हो सकते, इनसे भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है. कालसर्प योग आदि में कोई सच्चाई नहीं है. 'फलित ज्योतिष: कितना सच कितना झूठ' पुस्तक में इन सारी बातों की जानकारी विस्तारपूर्वक दी गयीं हैं. ज्योतिष में व्याप्त सारे अंधविश्वासों को जड़ सहित उखाड़ कर फेक दिया गया है. इतनी कमजोरियों के बावजूद यह सत्य है कि ग्रह मानव जीवन को प्रभावित करते हैं. इस पुस्तक में उन ज्योतिषीय अंशों को व्यवस्थित किया गया है जो विज्ञानं की सभी शर्तों का पालन करता है.

आस्तिक हो या नास्तिक दोनों में बहुत बड़ा अंतर नहीं होता. एक भक्ति भाव से ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करता है, जबकि नास्तिक शत्रु भाव रखकर उसकी औकात को समझने की कोशिश करता है. ज्योतिष विज्ञान को स्वीकार नहीं करनेवाले, उल्टा-सीधा प्रश्न करके, ज्योतिष के प्रति अपनी जानकारी की जिज्ञासा ही प्रगट करते हैं, अगर इसमें रूचि नहीं होती तो वे बिना अध्ययन के प्रश्न कदापि नहीं कर पाते. मैं उन्हें यही सलाह दूंगा कि वे इस विषय में अपनी अध्ययनशीलता को जारी रहने दें.

20150330

शकुन पद्धतियां क्‍या है ??


मेरे गांव में एक बुढि़या रहती थी। उसके यहां शकुन कराने के लिए अक्सर ही लोग आया करते थे। उसके यहां लोगों के आवागमन को देखकर मै कौतूहलवश वहां पहुंचा , यह जानने की जिज्ञासा के साथ कि यह बुढि़या आखिर करती क्या है , जिससे इसे सब बातें मालूम हो जाती हैं। उन दिनों मेरी उम्र मात्र 10-12 वर्ष ही रही होगी। यदि कोई विद्यार्थी उसके पास पहुंचता और पूछ बैठता कि वह परीक्षा में पास होगा या नहीं ? बुढि़या उसे दूसरे दिन की सुबह बुलाती , उसके आने पर आंखें बंद कर होठों से कुछ बुदबुदाती , मानो कोई मंत्र पढ़ रही हो। इसके बाद बहुत शीघ्रता से जमीन में कुछ रेखाएं खींचती थी । फिर राम , सीता , लक्ष्मण राम , सीता , लक्ष्मण , के क्रम को दुहराती चली जाती। यदि अंत की रेखा में राम आता तो कहती , अच्छी तरह पास हो जाओगे। यदि अंत में सीता आती , तो पास नहीं हो पाओगे , एक बड़ी अड़चन है। यदि लक्ष्मण आ जातें , तो कहती पास हो जाओगे , किसी तरह पास हो जाओगे।
इसी तरह किसी का कोई जानवर खो गया है , तो वह बुढि़या से पूछता कि उसका जानवर मिलेगा या नहीं ? वह जमीन में फटाफट कई रेखाएं खींच देती , फिर उन लकीरों को उसी तरह राम , सीता और लक्ष्मण के नाम से गिनना शुरु कर देती , अंतिम रेखा में रामजी का नाम आया , तो जानवर मिल जाएगा , सीताजी आयी , तो जानवर नहीं मिलेगा , लक्ष्मणजी आए , तो कठिन परिश्रम से जानवर मिल जाएगा। जानवर किस दिशा में मिलेगा , इस प्रश्न के उत्तर में वह फटाफट जमीन पर कई रेखाएं खींचती , पहली रेखा को पूरब , दूसरी रेखा को पश्चिम , तीसरी रेखा को उत्तर और चौथी रेखा को दक्षिण के रुप में गिनती जारी रखती। यदि अंतिम रेखा में पूरब आया , तो जानवर के पूरब दिशा में , पश्चिम आया , तो जानवर के पश्चिम दिशा में , उत्तर आया , तो उसके उत्तर दिशा में तथा दक्षिण आया , तो जानवर के दक्षिण दिशा में होने की भविष्यवाणी कर दी जाती। बुढि़या की इस कार्यवाही में सच कितना होता होगा , यह तो नहीं कहा जा सकता , किन्तु इसे विज्ञान कहना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं होगा।
बुढि़या की शकुन करने की पद्धति अत्यंत सरल है। इससे कौन आदमी कितना लाभान्वित हो सकता है , यह सोंचने की बात है। राम , लक्ष्मण और सीता की गिनती से रेखाओं को गिनना और किसी निष्कर्ष पर पहुंचना महज तीन संभावनाओं में से एक का उल्लेख करता है। तीनों संभावनाओं का विज्ञान से कोई वास्ता नहीं , फिर भी गांव के सरल लोग किसी दुविधा में पड़ते ही व्याकुल होकर उसके पास पहुंचने का क्रम बनाए रहते थे। कुछ चालाक तरह के लोग होते , वे भी बुढि़या के पास मनोरंजनार्थ पहुंचते। बुढि़या अपनी लोकप्रियता से खुश होती थी , कुछ लोग शकुन के बढि़या होने पर खुश होकर कुछ दे भी देते , पर काफी लोगों के लिए वह उपहास का विषय बनी हुई थी , इस तरह बुढि़या की शकुन करने की पद्धति विवादास्पद और हास्यास्पद थी।
बुढि़या की उपरोक्त शकुन पद्धति की चर्चा इसलिए कर रहा हॅू कि आज फलित ज्योतिष में शकुन पद्धति को व्यापक पैमाने पर स्थान मिला हुआ है। शकुनी ने तो पांडवों पर विजय प्राप्त करने और अपने भांजे दुर्योधन को विजयी बनाने के लिए किस पाशे का व्यवहार किया था या किस विधि से पाशे फेकता या फेकवाता था , यह अनुसंधान का विषय हो सकता है , जहां केवल जीत की ही संभावनाएं थी , लेकिन इतना तो तय है कि जिस पाशे से हार और जीत दोनो का ही निर्णय हो , उसमें संभावनाएं केवल दो होंगी। घनाकार एक पाशा हो , जिसके हर फलक में अलग अंक लिखा हो , जिसके हर अंक का फल अलग-अलग हो , उसकी संभावनाएं 1/6 होंगी। चूंकि प्रत्येक अंक के लिए एक-एक फल लिखा गया है , तो एक पाशे से बारी-बारी से 6 प्रकार के फलों को सुनाया जा सकता है। ऐसे प्रयोगों का परिणाम कदापि सही नहीं कहा जा सकता। मनोरंजनार्थ या लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए शकुन किया जाए , तो बात दूसरी है।
हर रेलवे स्टेशन में तौलमापक मशीनें रहती हैं। उसमें निर्धारित शुल्क डाल देने पर तथा उस मशीन में खड़े होने पर व्यक्ति के वजन के साथ ही साथ उसके भाग्य को बताने वाला एक कार्ड मुफत में मिल जाता है। अधिकांश लोग उसे अपना सही भाग्यफल समझकर बहुत रुचि के साथ पढ़ते हैं । इस विधि से प्राप्त भाग्यफल को भी एक प्रकार से लॉटरी से उठा हुआ भाग्यफल समझना चाहिए। जो विज्ञान पर आधृत नहीं होने के कारण कदापि विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। इसलिए इस भाग्यफल को विज्ञान मान्यता नहीं दे सकता।
बड़े-बड़े शहरों में ललाट पर तिलक लगाए ज्योतिषी के रुप में तोते के माध्यम से दूसरों का भाग्यफल निकालते हुए तथाकथित ज्योतिषियों की संख्या भी बढ़ती देखी जा रही है। 25-30 पर्चियों में विभिन्न प्रकार के भाग्यों का उल्लेख होता है। भाग्यफल की जानकारी प्राप्त करने वाला व्यक्ति तोतेवाले को निर्धारित शुल्क दक्षिणा के रुप में देता है , जिसे प्राप्त करते ही तोतेवाला पंडित तोते को निकाल देता है । तोता उन पर्चियों में से एक पर्ची निकालकर अपने मालिक के हाथ में रख देता है , उस पर्ची में जो लिखा होता है , वही उस जिज्ञासु व्यक्ति का भाग्य होता है। तत्क्षण ही एक बार और दक्षिणा देकर भाग्यफल निकालने को कहा जाए , तो प्रायः भाग्यफल बदल जाएगा। इस पद्धति को भी भाग्यफल की लॉटरी कहना उचित होगा। ग्रहों से संबंधित फल कथन से इस भाग्यफल का कोई रिश्ता नहीं। 
इसी तरह धार्मिक प्रवृत्ति के कुछ लोगों को रामायण के प्रारंभिक भाग में उल्लिखित श्री रामश्लाका प्रश्नावलि से भाग्यफल प्राप्त करते देखा गया हैं। रामश्लाका प्रश्नावलि में नौ चौपाइयों के अंतर्गत स्थान पानेवाले 25 गुना नौ यानि 225 अक्षरों को पंद्रह गुना पंद्रह , बराबर 225 ऊर्ध्वय एवं पार्श्वच कोष्ठकों के बीच क्रम से इस प्रकार सजाया गया है कि जिस कोष्ठक पर भगवान का नाम लेकर ऊॅगली रखी जाए , वहां से नौवें कोष्ठक पर जो अक्षर मिलते चले जाएं , और इस प्रक्रिया की निरंतरता को जारी रखा जाए , तो अंततः एक चौपाई बन जाती है , हर चौपायी के लिए एक विशेष अर्थ रखा गया है । भक्त उस अर्थ को अपना भाग्य समझ बैठता है। जैसे- सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजहिं मनकामना तुम्हारी। इसका फल होगा - प्रश्नकर्त्तार का प्रश्न उत्तम है। कार्य सिद्ध होगा ।
इसी तरह एक चौपाई - उधरे अंत न होई निबाहू। कालनेमि जिमि रावण राहू। का फल इस प्रकार होगा- इस कार्य में भलाई नहीं हैं। कार्य की सफलता में संदेह है। इस प्रकार की नौ चौपाइयों से धनात्मक या ऋणात्मक फल भक्त प्राप्त करते हैं। यहां भी फल प्राप्त करने की विधि लॉटरी पद्धति ही मानी जा सकती है। धार्मिक विश्वास और आस्था की दृष्टि से रामायण से शकुन कर मन को शांति प्रदान करने की यह विधि भक्तों के लिए सर्वोततम हो सकती है , परंतु इस प्रकार के एक उत्तर प्राप्त करने की संभावना 1/9 होगी और यह कदापि नहीं कहा जा सकता है कि इसे किसी प्रकार का वैज्ञानिक आधार प्राप्त है। शकुन शकुन ही होता है। कभी शकुन की बातें सही , तो अधिकांश समय गलत भी हो सकती हैं। 
घर या अस्पताल में अपना कोई मरीज मरणासन्न स्थिति में हो और उसी समय बिल्ली या कुत्ते के रोने की आवाज आ रही हो , तो ऐसी स्थिति में अक्सर मरीज के निकटतम संबंधियों का आत्मविश्वास कम होने लगता है , किन्तु ऐसा होना गलत है। कुत्ते या बिल्ली के रोने का यह अर्थ नहीं कि उस मरीज की मौत ही हो जाएगी। कुत्ते या बिल्ली का रोने की बेसुरी आवाज वातावरण को बोझिल और मनःस्थिति को कष्टकर बनाती है , किन्तु यह आवाज हर समय कोई भविष्यवाणी ही करती है या किसी बुरी घटना के घटने का संकेत देती है , ऐसा नहीं कहा जा सकता।
इस तरह कभी यात्रा की जा रही हो और रास्ते के आगे बिल्ली इस पार से उस पार हो जाए , तो शत-प्रतिशत वाहन-चालक वाहन को एक क्षण के लिए रोक देना ही उचित समझते हैं। ऐसा वे यह सोंचकर करते हैं कि यदि गाड़ी नहीं रोकी गयी , तो आगे चलकर कहीं भी दुर्घटना घट सकती है। ऐसी बातें कभी भी विज्ञानसम्मत नहीं मानी जा सकती , क्योकि जिस बात को लोग बराबर देखते सुनते और व्यवहार में लाते हैं , उसे वे फलित ज्योतिष का अंग मान लेते हैं , उन्हें ऐसा लगता है , मानो बिल्ली ने रास्ता काटकर यह भविष्यवाणी कर दी कि थोड़ी देर के लिए रुक जाओ , अन्यथा गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगी। कैसी विडम्बना है , रेलवे फाटक पर पहरा दे रहा चौकीदार जब आते हुए रेल को देखकर गाड़ीवाले को रुकने का संकेत करता है , तो बहुत से लोग एक्सीडेंट की परवाह न करते हुए रेलवे क्रॉसिंग को पार करने को उद्यत हो जाते हैं और बिल्ली के रास्ता काटने पर उससे डरकर लोग गाड़ी रोक देते हैं।
मैं पहले ही इस बात की चर्चा कर चुका हूं कि प्रमुख सात ग्रहों या आकाशीय पिंडों के नाम के आधार पर सप्ताह के सात दिनों के नामकरण भले ही कर दिया गया हो , लेकिन इन दिनों पर संबंधित ग्रहों का कोई प्रभाव नहीं होता है। लेकिन शकुन के लिए लोगों ने इन दिनों को आधार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यथा ‘ रवि मुख दर्पण , सोमे पान , मंगल धनिया , बुध मिष्टान्न। बिफे दही , शुके राय , शनि कहे नहाय , धोय खाय।’ इसका अर्थ हुआ कि रविवार को दर्पण में चेहरा देखने पऱ , सोमवार को पान खाने पर , मंगलवार को धनिया चबाने पर , बुध को मिठाई का सेवन करने पर , बृहस्पतिवार को दही खाने पर , शुक्रवार को सरसों या राई खाने पर तथा शनिवार को स्नान कर खाने के बाद कोई काम करने पर शकुन बनता है , कार्य की सिद्धि होती है। इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक पक्ष नहीं है , जिससे फलित ज्योतिष का कोई लेना-देना रहे। जब सप्ताह के दिनों से ग्रहों के प्रभाव का ही कोई धनात्मक या ऋणात्मक सह-संबंध नहीं है , तो इलाज , शकुन या भविष्यफल कथन कहां तक सही हो सकता है , यह सोंचनेवाली बात है।
शकुन पद्धति से या लॉटरी की पद्धति से कई संभावनाओं में से एक को स्वीकार करने की प्रथा है। किन्तु हम अच्छी तरह से जानते हैं कि बार-बार ऐसे प्रयोगों का परिणाम विज्ञान की तरह एक जैसा नहीं होता। अतः इस प्रकार के शकुन भले ही कुछ क्षणों के लिए आहत मन को राहत दे दे , भविष्य या वर्तमान जानने की पक्की विधि कदापि नहीं हो सकती। स्मरण रहे , विज्ञान से सत्य का उद्घाटन किया जा सकता है तथा अनुमान से कई प्रकार की संभावनाओं की व्याख्या करके अनिश्चय और निश्चय के बीच पेंडुलम की तरह थिरकता रहना पड़ सकता है , लेकिन इन दोनों से अलग लॉटरी या शकुन पद्धति से अनुमान और सत्य दोनों की अवहेलना करते हुए अॅधेरे में टटोलते हुए जो भी हाथ लग जाए , उसे अपनी नियति मान बैठने का दर्द झेलने को विवश होना पड़ता है।

20150329

यात्रा और सप्ताह के दिन


सप्ताह के सभी दिनों का ग्रहों से कोई लेना देना ही नहीं हैं , यह बात पिछले अध्याय में ही समझायी जा चुकी है। तब यात्रा के संबंध में विधि-निषेध से संबंधित ज्योतिषीय नियमों में भी सवालिया निशान लग जाता है। ज्योतिष ग्रंथों में लिखा है-------
सोम शनिश्चर पूरब न चालू।
मंगल बुध उत्तर दिशि कालू।
यानि सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा में नहीं जाना चाहिए , किन्तु सब लोग इस बात से भिज्ञ हैं कि प्रत्येक दिन की तरह सोमवार और शनिवार को पूरब दिशा से चलनेवाली गाडि़यों की संख्या उतनी ही होती है , जितनी अन्य दिनों में। यदि सोमवार , शनिवार को पूरब दिशा से चलनेवाली हजारों गाडि़यों में से कोई एक कभी दुर्घटनाग्रस्त हो भी जाती है तो इस प्रकार की बात पूरब से चलनेवाली गाड़ी में भी शुक्रवार को देखी जा सकती है। इसलिए इस बात की पुष्टि नहीं हो पाती है कि निश्चित तौर पर सोमवार , शनिवार को पूरब की ओर चलनेवाली सभी गाडि़यों को सुरक्षा की दृष्टि से रोक दिया जाए या मंगलवार , बुधवार को उत्तर दिशा में कोई गाड़ी नहीं चलने दी जाए। वास्तव में ज्योतिष शास्त्र में उल्लिखित ये सारे नियम बिना वजह भय और संशय उत्पन्न करनेवाले हैं। इन नियमों की अवैज्ञानिकता से ही ज्योतिष अविश्वसनीय बना हुआ है। इन अंधविश्वासों को हम हजारो वर्षों से ढोते आ रहें हैं। आज के वैज्ञानिक युग में इस प्रकार की बातें आम लोगों के बीच कौतुहल , हास्य और व्यंग्य का कारण बनतीं हैं। इन नियमों को मानने के लिए कोई तैयार नहीं है। किन्तु ज्योतिषी बंधुओं को इस प्रकार की कमजोरियों को भी स्वीकार करने में हिचकिचाहट नहीं है। अब तक ज्योतिष के जिस स्वरुप को उभारा गया है , उससे आम आदमी संकट के समय ग्रहों के भय से भयभीत होते है । जिस दिन ज्योतिष के वैज्ञानिक स्वरुप को वे जान जाएंगे , वे निडर और निश्चिंत दिखाई पड़ेंगे।