20150330

शकुन पद्धतियां क्‍या है ??


मेरे गांव में एक बुढि़या रहती थी। उसके यहां शकुन कराने के लिए अक्सर ही लोग आया करते थे। उसके यहां लोगों के आवागमन को देखकर मै कौतूहलवश वहां पहुंचा , यह जानने की जिज्ञासा के साथ कि यह बुढि़या आखिर करती क्या है , जिससे इसे सब बातें मालूम हो जाती हैं। उन दिनों मेरी उम्र मात्र 10-12 वर्ष ही रही होगी। यदि कोई विद्यार्थी उसके पास पहुंचता और पूछ बैठता कि वह परीक्षा में पास होगा या नहीं ? बुढि़या उसे दूसरे दिन की सुबह बुलाती , उसके आने पर आंखें बंद कर होठों से कुछ बुदबुदाती , मानो कोई मंत्र पढ़ रही हो। इसके बाद बहुत शीघ्रता से जमीन में कुछ रेखाएं खींचती थी । फिर राम , सीता , लक्ष्मण राम , सीता , लक्ष्मण , के क्रम को दुहराती चली जाती। यदि अंत की रेखा में राम आता तो कहती , अच्छी तरह पास हो जाओगे। यदि अंत में सीता आती , तो पास नहीं हो पाओगे , एक बड़ी अड़चन है। यदि लक्ष्मण आ जातें , तो कहती पास हो जाओगे , किसी तरह पास हो जाओगे।
इसी तरह किसी का कोई जानवर खो गया है , तो वह बुढि़या से पूछता कि उसका जानवर मिलेगा या नहीं ? वह जमीन में फटाफट कई रेखाएं खींच देती , फिर उन लकीरों को उसी तरह राम , सीता और लक्ष्मण के नाम से गिनना शुरु कर देती , अंतिम रेखा में रामजी का नाम आया , तो जानवर मिल जाएगा , सीताजी आयी , तो जानवर नहीं मिलेगा , लक्ष्मणजी आए , तो कठिन परिश्रम से जानवर मिल जाएगा। जानवर किस दिशा में मिलेगा , इस प्रश्न के उत्तर में वह फटाफट जमीन पर कई रेखाएं खींचती , पहली रेखा को पूरब , दूसरी रेखा को पश्चिम , तीसरी रेखा को उत्तर और चौथी रेखा को दक्षिण के रुप में गिनती जारी रखती। यदि अंतिम रेखा में पूरब आया , तो जानवर के पूरब दिशा में , पश्चिम आया , तो जानवर के पश्चिम दिशा में , उत्तर आया , तो उसके उत्तर दिशा में तथा दक्षिण आया , तो जानवर के दक्षिण दिशा में होने की भविष्यवाणी कर दी जाती। बुढि़या की इस कार्यवाही में सच कितना होता होगा , यह तो नहीं कहा जा सकता , किन्तु इसे विज्ञान कहना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं होगा।
बुढि़या की शकुन करने की पद्धति अत्यंत सरल है। इससे कौन आदमी कितना लाभान्वित हो सकता है , यह सोंचने की बात है। राम , लक्ष्मण और सीता की गिनती से रेखाओं को गिनना और किसी निष्कर्ष पर पहुंचना महज तीन संभावनाओं में से एक का उल्लेख करता है। तीनों संभावनाओं का विज्ञान से कोई वास्ता नहीं , फिर भी गांव के सरल लोग किसी दुविधा में पड़ते ही व्याकुल होकर उसके पास पहुंचने का क्रम बनाए रहते थे। कुछ चालाक तरह के लोग होते , वे भी बुढि़या के पास मनोरंजनार्थ पहुंचते। बुढि़या अपनी लोकप्रियता से खुश होती थी , कुछ लोग शकुन के बढि़या होने पर खुश होकर कुछ दे भी देते , पर काफी लोगों के लिए वह उपहास का विषय बनी हुई थी , इस तरह बुढि़या की शकुन करने की पद्धति विवादास्पद और हास्यास्पद थी।
बुढि़या की उपरोक्त शकुन पद्धति की चर्चा इसलिए कर रहा हॅू कि आज फलित ज्योतिष में शकुन पद्धति को व्यापक पैमाने पर स्थान मिला हुआ है। शकुनी ने तो पांडवों पर विजय प्राप्त करने और अपने भांजे दुर्योधन को विजयी बनाने के लिए किस पाशे का व्यवहार किया था या किस विधि से पाशे फेकता या फेकवाता था , यह अनुसंधान का विषय हो सकता है , जहां केवल जीत की ही संभावनाएं थी , लेकिन इतना तो तय है कि जिस पाशे से हार और जीत दोनो का ही निर्णय हो , उसमें संभावनाएं केवल दो होंगी। घनाकार एक पाशा हो , जिसके हर फलक में अलग अंक लिखा हो , जिसके हर अंक का फल अलग-अलग हो , उसकी संभावनाएं 1/6 होंगी। चूंकि प्रत्येक अंक के लिए एक-एक फल लिखा गया है , तो एक पाशे से बारी-बारी से 6 प्रकार के फलों को सुनाया जा सकता है। ऐसे प्रयोगों का परिणाम कदापि सही नहीं कहा जा सकता। मनोरंजनार्थ या लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए शकुन किया जाए , तो बात दूसरी है।
हर रेलवे स्टेशन में तौलमापक मशीनें रहती हैं। उसमें निर्धारित शुल्क डाल देने पर तथा उस मशीन में खड़े होने पर व्यक्ति के वजन के साथ ही साथ उसके भाग्य को बताने वाला एक कार्ड मुफत में मिल जाता है। अधिकांश लोग उसे अपना सही भाग्यफल समझकर बहुत रुचि के साथ पढ़ते हैं । इस विधि से प्राप्त भाग्यफल को भी एक प्रकार से लॉटरी से उठा हुआ भाग्यफल समझना चाहिए। जो विज्ञान पर आधृत नहीं होने के कारण कदापि विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। इसलिए इस भाग्यफल को विज्ञान मान्यता नहीं दे सकता।
बड़े-बड़े शहरों में ललाट पर तिलक लगाए ज्योतिषी के रुप में तोते के माध्यम से दूसरों का भाग्यफल निकालते हुए तथाकथित ज्योतिषियों की संख्या भी बढ़ती देखी जा रही है। 25-30 पर्चियों में विभिन्न प्रकार के भाग्यों का उल्लेख होता है। भाग्यफल की जानकारी प्राप्त करने वाला व्यक्ति तोतेवाले को निर्धारित शुल्क दक्षिणा के रुप में देता है , जिसे प्राप्त करते ही तोतेवाला पंडित तोते को निकाल देता है । तोता उन पर्चियों में से एक पर्ची निकालकर अपने मालिक के हाथ में रख देता है , उस पर्ची में जो लिखा होता है , वही उस जिज्ञासु व्यक्ति का भाग्य होता है। तत्क्षण ही एक बार और दक्षिणा देकर भाग्यफल निकालने को कहा जाए , तो प्रायः भाग्यफल बदल जाएगा। इस पद्धति को भी भाग्यफल की लॉटरी कहना उचित होगा। ग्रहों से संबंधित फल कथन से इस भाग्यफल का कोई रिश्ता नहीं। 
इसी तरह धार्मिक प्रवृत्ति के कुछ लोगों को रामायण के प्रारंभिक भाग में उल्लिखित श्री रामश्लाका प्रश्नावलि से भाग्यफल प्राप्त करते देखा गया हैं। रामश्लाका प्रश्नावलि में नौ चौपाइयों के अंतर्गत स्थान पानेवाले 25 गुना नौ यानि 225 अक्षरों को पंद्रह गुना पंद्रह , बराबर 225 ऊर्ध्वय एवं पार्श्वच कोष्ठकों के बीच क्रम से इस प्रकार सजाया गया है कि जिस कोष्ठक पर भगवान का नाम लेकर ऊॅगली रखी जाए , वहां से नौवें कोष्ठक पर जो अक्षर मिलते चले जाएं , और इस प्रक्रिया की निरंतरता को जारी रखा जाए , तो अंततः एक चौपाई बन जाती है , हर चौपायी के लिए एक विशेष अर्थ रखा गया है । भक्त उस अर्थ को अपना भाग्य समझ बैठता है। जैसे- सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजहिं मनकामना तुम्हारी। इसका फल होगा - प्रश्नकर्त्तार का प्रश्न उत्तम है। कार्य सिद्ध होगा ।
इसी तरह एक चौपाई - उधरे अंत न होई निबाहू। कालनेमि जिमि रावण राहू। का फल इस प्रकार होगा- इस कार्य में भलाई नहीं हैं। कार्य की सफलता में संदेह है। इस प्रकार की नौ चौपाइयों से धनात्मक या ऋणात्मक फल भक्त प्राप्त करते हैं। यहां भी फल प्राप्त करने की विधि लॉटरी पद्धति ही मानी जा सकती है। धार्मिक विश्वास और आस्था की दृष्टि से रामायण से शकुन कर मन को शांति प्रदान करने की यह विधि भक्तों के लिए सर्वोततम हो सकती है , परंतु इस प्रकार के एक उत्तर प्राप्त करने की संभावना 1/9 होगी और यह कदापि नहीं कहा जा सकता है कि इसे किसी प्रकार का वैज्ञानिक आधार प्राप्त है। शकुन शकुन ही होता है। कभी शकुन की बातें सही , तो अधिकांश समय गलत भी हो सकती हैं। 
घर या अस्पताल में अपना कोई मरीज मरणासन्न स्थिति में हो और उसी समय बिल्ली या कुत्ते के रोने की आवाज आ रही हो , तो ऐसी स्थिति में अक्सर मरीज के निकटतम संबंधियों का आत्मविश्वास कम होने लगता है , किन्तु ऐसा होना गलत है। कुत्ते या बिल्ली के रोने का यह अर्थ नहीं कि उस मरीज की मौत ही हो जाएगी। कुत्ते या बिल्ली का रोने की बेसुरी आवाज वातावरण को बोझिल और मनःस्थिति को कष्टकर बनाती है , किन्तु यह आवाज हर समय कोई भविष्यवाणी ही करती है या किसी बुरी घटना के घटने का संकेत देती है , ऐसा नहीं कहा जा सकता।
इस तरह कभी यात्रा की जा रही हो और रास्ते के आगे बिल्ली इस पार से उस पार हो जाए , तो शत-प्रतिशत वाहन-चालक वाहन को एक क्षण के लिए रोक देना ही उचित समझते हैं। ऐसा वे यह सोंचकर करते हैं कि यदि गाड़ी नहीं रोकी गयी , तो आगे चलकर कहीं भी दुर्घटना घट सकती है। ऐसी बातें कभी भी विज्ञानसम्मत नहीं मानी जा सकती , क्योकि जिस बात को लोग बराबर देखते सुनते और व्यवहार में लाते हैं , उसे वे फलित ज्योतिष का अंग मान लेते हैं , उन्हें ऐसा लगता है , मानो बिल्ली ने रास्ता काटकर यह भविष्यवाणी कर दी कि थोड़ी देर के लिए रुक जाओ , अन्यथा गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगी। कैसी विडम्बना है , रेलवे फाटक पर पहरा दे रहा चौकीदार जब आते हुए रेल को देखकर गाड़ीवाले को रुकने का संकेत करता है , तो बहुत से लोग एक्सीडेंट की परवाह न करते हुए रेलवे क्रॉसिंग को पार करने को उद्यत हो जाते हैं और बिल्ली के रास्ता काटने पर उससे डरकर लोग गाड़ी रोक देते हैं।
मैं पहले ही इस बात की चर्चा कर चुका हूं कि प्रमुख सात ग्रहों या आकाशीय पिंडों के नाम के आधार पर सप्ताह के सात दिनों के नामकरण भले ही कर दिया गया हो , लेकिन इन दिनों पर संबंधित ग्रहों का कोई प्रभाव नहीं होता है। लेकिन शकुन के लिए लोगों ने इन दिनों को आधार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यथा ‘ रवि मुख दर्पण , सोमे पान , मंगल धनिया , बुध मिष्टान्न। बिफे दही , शुके राय , शनि कहे नहाय , धोय खाय।’ इसका अर्थ हुआ कि रविवार को दर्पण में चेहरा देखने पऱ , सोमवार को पान खाने पर , मंगलवार को धनिया चबाने पर , बुध को मिठाई का सेवन करने पर , बृहस्पतिवार को दही खाने पर , शुक्रवार को सरसों या राई खाने पर तथा शनिवार को स्नान कर खाने के बाद कोई काम करने पर शकुन बनता है , कार्य की सिद्धि होती है। इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक पक्ष नहीं है , जिससे फलित ज्योतिष का कोई लेना-देना रहे। जब सप्ताह के दिनों से ग्रहों के प्रभाव का ही कोई धनात्मक या ऋणात्मक सह-संबंध नहीं है , तो इलाज , शकुन या भविष्यफल कथन कहां तक सही हो सकता है , यह सोंचनेवाली बात है।
शकुन पद्धति से या लॉटरी की पद्धति से कई संभावनाओं में से एक को स्वीकार करने की प्रथा है। किन्तु हम अच्छी तरह से जानते हैं कि बार-बार ऐसे प्रयोगों का परिणाम विज्ञान की तरह एक जैसा नहीं होता। अतः इस प्रकार के शकुन भले ही कुछ क्षणों के लिए आहत मन को राहत दे दे , भविष्य या वर्तमान जानने की पक्की विधि कदापि नहीं हो सकती। स्मरण रहे , विज्ञान से सत्य का उद्घाटन किया जा सकता है तथा अनुमान से कई प्रकार की संभावनाओं की व्याख्या करके अनिश्चय और निश्चय के बीच पेंडुलम की तरह थिरकता रहना पड़ सकता है , लेकिन इन दोनों से अलग लॉटरी या शकुन पद्धति से अनुमान और सत्य दोनों की अवहेलना करते हुए अॅधेरे में टटोलते हुए जो भी हाथ लग जाए , उसे अपनी नियति मान बैठने का दर्द झेलने को विवश होना पड़ता है।

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