20150328

वार से फलित कथन अवैज्ञानिक


मैं प्रत्येक मंगलवार को शैव करने या बाल बनाने के लिए सैलून जाता हूं , या कभी-कभी सैलूनवाले को ही घर पर बुलवा लेता हूं। सेलून में जो नाई रहता है , वह गंवई रिश्ते में मुझे चाचाजी कहता है। विगत दो वषो से मैं उससे लागातर प्रत्येक मंगलवर को शैव करवाता आ रहा हूं। एक दिन सैलूनवाला मुझसे कहता है-`चाचाजी एक प्रश्न पूछूं ?´ 
मैंने कहा -` क्यों नहीं ? खुशी से पूछ सकते हो । ´ 
` लोग कहते हैं , आप बहुत बड़े ज्योतिषी हो , 
,लोग कहते हैं तो मैं हो सकता हूं , पर तुझे कोई संशय है क्या ? ´ 
` इतने बड़े ज्योतिषी होने के बावजूद आप मंगलवार को बाल या दाढ़ी बनवाते हैं। कई लोगों का कहना है कि बृहस्पतिवार को बाल बनवाने से लक्ष्मी दूर भागती है और शनिवार मंगलवार को लागातार बाल बनवाने से बहुत ही अनिष्ट होता है। एक राजा लागातार कुछ दिनों तक इन्हीं दिनों में हजामत बनवाया करता था , जिससे कुछ दिनों बाद उसकी हत्या हो गयी थी। ´
वह बोलता ही जा रहा था। उसकी बातों को सुनने के बाद मैंने कहा-` किस राजा महाराजा के साथ कौन सी घटना घटी थी , यह तो मुझे मालूम नहीं और न ही मैं मालूम करना चाहता हूं। मैने मंगलवार का दिन इसलिए चयन किया क्योंकि इस दिन अंधविश्वास के चक्कर में पड़ने से लोगों की भीड़ तुम्हारे पास नहीं होती और इसलिए तुम फुर्सत में होते हो। मुझे काफी देर तक तुम्हारा इंतजार नहीं करना होता है। मेरा काम शीघ्र ही बन जाता है। आज से बहुत दिन पहले सप्ताह के दूसरे दिनों में भी तुम्हारे पास आया था। उस समय तुम्हें फुर्सत नहीं थी , तब काफी देर मुझे अखबार पढ़कर समय काटना पड़ा था। इस तरह मेरे कीमती समय की कुछ बर्वादी हो गयी थी। अब मुझे मंगलवार को बाल कटवाने में सुविधा हो जाती है। इसलिए इस दिन के साथ समझौता कर चुका हूं , सप्ताह के दूसरे दिनों में मुझे असुविधा होती है। सुयोग उसे ही कहते हैं , जब काम आसानी से बन जाए। इन कायोZं के लिए मेरे लिए बुधवार शुभ नहीं है , क्योंकि इस दिन समय की अनावश्यक बर्वादी हो जाती है , रुटीन में व्यवधान उपस्थित होता है , काम करनें का सिलसिला बिगड़ जाता है।
समाज में देखा जाए , तो अधिकांश लोग मंगलवार और शनिवार को इस तरह के कायोZं या अन्य दिनों को अन्य किसी प्रकार के कायोZं के लिए अशुभ मानते हैं। उनका ऐसा विश्वास है कि गलत दिनों में किया गया कार्य अनिष्टकर फल भी प्रदान कर सकता है। इसे कोरा अंधविश्वास ही कहा जा सकता है , क्योंकि भले ही ग्रहों के नाम पर इन वारों का नामकरण हो गया हो ,किन्तु सच्ची बात यह है कि ग्रहों की स्थिति से इन वारों का कोई संबंध है ही नहीं। न तो रविवार को सूर्य आकाश के किसी खास भाग में होता है ,और न ही इस दिन सूर्य की गति में कोई परिवत्र्तन होता है , और न ही रविवार को सूर्य केवल धनात्मक या ऋणात्मक फल ही देता है। जब ऐसी बाते है ही नही तो फिर रविवार से सूर्य का कौन सा संबंध है ?
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रविवार से सूर्य का कोई संबंध है ही नहीं । रविवार से सूर्य का संबंध दिखा पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए न केवल कठिन वरन् असंभव कार्य है। सुविधा के अनुसार किसी भी बच्चे का कुछ भी नाम रखा जा सकता है , परंतु उस बच्चे में नाम के अनुसार गुण भी आ जाएं , ऐसा नििश्चत नहीं है। यथानाम तथागुण लोगों की संख्या नगण्य ही होती है , इस संयोग की सराहना की जा सकती है पर किसी व्यक्ति का कोई नाम रखकर उसके अनुरुप ही विशेषताओं को प्राप्त करने की इच्छा रखें तो यह हमारी भूल होगी । इस बात से आम लोग भिज्ञ भी हैं , तभी ही यह कहावत मशहूर है ` ऑख का अंधा , नाम नयनसुख ´ ।
इसी तरह कभी-कभी पृथ्वीपति नामक व्यक्ति के पास कोई जमीन नहीं होती तथा दमड़ीलाल के पास करोड़ों की संपत्ति होती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि किसी नामकरण का कोई वैज्ञानिक अर्थ हो या नाम के साथ गुणों का भी संबंध हो , यह आवश्यक नहीं है। कोई व्यक्ति अपने पुत्र का नाम रवि रख दे तथा उसमें सूर्य की विशेषताओं की तलाश करे , उसकी पूजा कर सूर्य भगवान को खुश रखने की चेष्टा करे तो ऐसा संभव नहीं है। इस तरह न तो रविवार से सूर्य का , न सोमवार से चंद्र का , मंगलवार से मंगल का , बुधवार से बुध का , बृहस्पतिवार से बृहस्पति का , शुक्रवार से शुक्र का और न ही शनिवार से शनि का ही संबंध होता है।
इसी तरह मंगलवार का व्रत करके सुखद परिस्थितियों में मन और शरीर को चाहे जिस हद तक स्वस्थ , चुस्त , दुरुस्त या विपरीत परिस्थितियों में शरीर को कमजोर कर लिया जाए , हनुमानजी या मंगल ग्रह का कितना भी स्मरण कर लिया जाए , हनुमान या मंगल पर इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रभाव नहीं पड़ता। पूजा करने से ये खुश हो जाएंगे , ऐसा विज्ञान नहीं कहता , किन्तु पुजारी ये समझ लें और बहुत आस्था के साथ पूजापाठ में तल्लीन हो जाएं , तो मनोवैज्ञानिक रुप से इसका भले ही कुछ लाभ उन्हें मिल जाए , वे कुछ क्षणों के लिए राहत की सॉस अवश्य ले लेते हैं।
कभी कभी नामकरण विशेषताओं के आधार पर भी किया जाता है और कभी कुछ चित्रों और तालिकाओं के अनुसार किया जाता है। ऋतुओं का नामकरण इनकी विशेषताओं की वजह से है , इसे हम सभी जानते हैं। ग्रीष्मऋतु कहने से ही प्रचंड गमीZ का बोध होता है , वषाZऋतु से मूसलाधार वृिष्ट का तथा शरदऋतु कहने से उस मौसम का बोध होता है , जब अत्यधिक ठंड से लोग रजाई के अंदर रहने में सुख महसूस करें। इसी तरह माह के नामकरण के साथ भी कुछ विशेषताएं जुड़ी हुई है। आिश्वन महीने का नामकरण इसलिए हुआ , क्योंकि इस महीने में अिश्वनी नक्षत्र में पूणिZमा का चॉद होता है। बैशाख नाम इसलिए पड़ा , क्योंकि इस महीने में विशाखा नक्षत्र में पूणिZमा का चॉद होता है।
इस तरह हर महीने की विशेषता भिन्न-भिन्न इसलिए हुई ,क्योंकि सूर्य की स्थिति प्रत्येक महीने आकाश में भिन्न-भिन्न जगहों पर होती है। ज्योतिषीय दृिष्ट से भी हर महीने की अलग-अलग विशेषताएं हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में उजाले और अंधेरे का अनुपात बराबर बराबर होने के बावजूद एक को कृष्ण और दूसरे को शुक्ल पक्ष कहा गया है। दोनों पक्षों के मौलिक गुणों में कोई भी अंतर नहीं होता है। बड़ा या छोटा चॉद दोनो पक्षों में होता है। अष्टमी दोनों पक्षों में होती है। किन्तु ये नाम अलग ही दृिष्टकोण से दिए गए हैं । जिस पक्ष में शाम होने के साथ ही अंधेरा हो , उसे कृष्ण पक्ष और जिस पक्ष में शाम पर उजाला रहे , उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं।
शुक्ल पक्ष के आरंभ में चंद्रमा सूर्य के अत्यंत निकट होता है। प्रत्येक दिन सूर्य से उसकी दूरी बढ़ती चली जाती है और पूर्णमासी के दिन यह सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर पूर्ण प्रकाशमान देखा जाता है। इस समय सूर्य से इसकी कोणिक दूरी 180 डिग्री होती है। इस दिन सूर्यास्त से सूयोZदय तक रोशनी होती है। इसके बाद कृष्ण पक्ष का प्रारंभ होता है। प्रत्येक दिन सूर्य और चंद्रमा की कोणिक दूरी घटने लगती है। इसका प्रकाशमान भाग घटने लगता है और कृष्ण पक्ष के अंत में अमावश तिथि के दिन सूर्य चंद्रमा एक ही विन्दु पर होते हैं। सूयोZदय से सूर्यास्त तक अंधेरा ही अंधेरा होता है।
इस तरह ऋतु , महीने और पक्षों की वैज्ञानिकता समझ में आ जाती है। भचक्र में सूर्य , चंद्रमा और नक्षत्र - सभी का एक दूसरे के साथ परस्पर संबंध है , किन्तु सप्ताह के सात दिनों का नामकरण ग्रहों के गुणों पर आधारित न होकर याद रख पाने की सुविधा से प्रमुख सात आकाशीय पिंडों के नाम के आधार पर किया गया लगता है , महीनें को दो हिस्सों में बॉटकर एक-एक पखवारे का शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष बनाया गया है। दोनो ही पक्ष सूर्य और चंद्रमा की वििभ्न्न स्थितियों के सापेक्ष हैं , किन्तु एक पखवारे को दो हिस्सों में बॉटकर दो सप्ताह में समझने की विधि केवल सुविधावादी दृिष्टकोण का परिचायक है। जब सप्ताह का निर्माण ही ग्रहों पर आधारित नहीं है , तो उसके अंदर आनेवाले सात अलग अलग दिनों का भी कोई वैज्ञानिक अर्थ नहीं है।
सौरमास और चंद्रमास दोनों की परिकल्पनाओं का आधार भिन-भिन्न है। पृथ्वी 365 दिन और कुछ घंटों में एक बार सूर्य की परिक्रमा कर लेती है। इसे सौर वषZ कहतें हैं, इसके बारहवें भाग को एक महीना कहा जाता है। सौरमास से अभिप्राय सूर्य का एक रािश में ठहराव या आकाश में 30 डिग्री की दूरी तय करना होता है। चंद्रमास उसे कहते हैं , जब चंद्रमा एक बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर लेता है। यह लगभग 29 दिनों का होता है । बारह महीनों में बारह बार सूर्य की परिक्रमा करने में चंद्रमा को लगभग 354 दिन लगते हैं। इसलिए चंद्रवषZ 354 दिनों का होता है। सौर वष्र और चंद्रवषZ के सवा ग्यारह दिनों के अंतर को प्रत्येक तीन वषोZं के पश्चात् चंद्रवषZ में एक अतिरिक्त महीनें मलमास को जोड़कर पाट दिया जाता है।
सौर वषZ में भी 365 दिनों के अतिरिक्त के 5 घंटों को चार वषे बाद लीप ईयर वषZ में फरवरी महीने को 29 दिनों का बनाकर समन्वय किया जाता है , किन्तु सप्ताह के सात दिन , जो पखवारे के 15 दिन , महीने के 30 दिन , चांद्रवषZ के 354 दिन और सौर वषZ के 365 दिन में से किसी का भी पूर्ण भाजक या अपवत्र्तांक नहीं है , के समन्वय या समायोजन का ज्योतिष शास्त्र में कहीं भी उल्लेख नहीं है , जिससे स्वयंमेव ही ज्योतिषीय संदर्भ में सप्ताह की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाती है। अत: मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रविवार को सूर्य का , सोमवार को चंद्र का , मंगलवार को मंगल का , बुधवार को बुध का , बृहस्पतिवार को बृहस्पति का , शुक्रवार को शुक्र का तथ शनिवार को शनि का पर्याय मान लेना एक बहुत बड़ी गल्ती है। ग्रहों का सप्ताह के सातो दिनों से कोई लेना-देना नहीं है।
सात दिनों का सप्ताह मानकर पक्ष को लगभग दो हिस्सों में बॉटकर सात दिनों के माध्यम से सातो ग्रहों को याद करने की चेष्टा की गयी होगी। लोग कभी यह महसूस नहीं करें कि ग्रहों का प्रभाव नहीं होता ।शायद इसी शाश्वत सत्य के स्वीकर करने और कराने के लिए ऋषि मुनियो द्वारा सप्ताह के सात दिनों को ग्रहों के साथ जोड़ना एक बड़े सूत्र के रुप में काम आया हो। एक ज्योतिषी होने के नाते सप्ताह के इन सात दिनों से मुझे अन्य कुछ सुविधाएं प्राप्त हैं। आज मंगलवार को चंद्रमा सिंह रािश में स्थित है , तो बिना पंचांग देख ही यह अनुमान लगाना संभव है कि आगामी मंगलवार को चंद्रमा वृिश्चक रािश में , उसके बाद वाले मंगलवार को कुंभ रािश में तथ उसके बादवाले मंगलवार को वृष रािश में या उसके अत्यंत निकट होगा।
इस दृिष्ट से चंद्रमा की भचक्र में 28 दिनों का चक्र मानकर इसे 4 भागों में बॉट दिया गया हो तो हिसाब सुविधा की दृिष्ट से अच्छा ही है। मंगलवार को स्थिर रािश में चंद्रमा है तो कुछ सताहों तक आनेवाले मंगलवार को चंद्रमा स्थिर रािश में ही रहेगा। कुछ दिनों बाद चंद्रमा द्विस्वभाव रािश में चला जाएगा तो फिर कुछ सप्ताहों तक मंगलवार को चंद्रमा द्विस्वभाव रािश में ही रहेगा।
मैं वैज्ञानिक तथ्यों को सहज ही स्वीकार करता हूं। पंचांग में तिथि , नक्षत्र , योग और करण की चर्चा रहती है। ये सभी ग्रहों की स्थिति पर आधारित हैं। किसी ज्योतिषी को बहुत दिनों तक अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया जाए , ताकि महीने और दिनों के बीतने की कोई सूचना उसके पास नहीं हो । कुछ महीनों बाद जिस दिन उसे आसमान को निहारने का मौका मिल जाएगा , केवल सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को देखकर वह समझ जाएगा कि उस दिन कौन सी तिथि है , कौन से नक्षत्र में चंद्रमा है , सामान्य गणना से वह योग और करण की भी जानकारी प्राप्त कर सकेगा , किन्तु उसे सप्ताह के दिन की जानकारी कदापि संभव नहीं हो पाएगी , ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य , चंद्रमा या अन्य ग्रहों की स्थिति के सापेक्ष सप्ताह के सात के दिनों का नामकरण नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्लेस्टोर में जाकर गत्यात्मक ज्योतिष एप्प ढूंढे। खास आपके लिए लिखी गयी दैनिक, वार्षिक भविष्यफल के लिए इसे अपने मोबाइल में स्थापित करें, गत्यात्मक जन्मकुंडली बनवाने, जन्मकुंडली मिलान या ऑनलाइन ज्योतिष समाधान के लिए gatyatmakjyotishapp@gmail.com पर संपर्क करें।